सफ़ेद पंखों की उड़ान | Saphed Pankhon Ki Udan

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Saphed Pankhon Ki Udan by हरदर्शन सहगल- Hardarshan Sahagal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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17 उसकी दक्षता पर उसे शाबाशी दे रहे हैं । ह दाद पाकर जिम तरह किती मच कविकाग लासाप हो जाता बी उरी प्रकार गीता के स्वर में निखार मा यया--मुये तो चारो की निगाह रखना पढ़ती है। बस, चास ही कहिए बि मैने पहल कर डक वला । वहे वहतं उसा बिजली का स्विच भान कर दिया वि इस आगन रौशन हा गया । नीली साडी का पला भिर से नरा भाया ं चहय बर दौप्त हो उठा । गीता आगे सुनान लगी--आज सुबह से ही गढ़ की मा सामान समट रही थी । मैते जागर पहने तो अपने लायक भराम पमे की कई गोपचारिकना दिवायौ । फिर मौका देखकर उसे समझावे मै लहूजे से बहा--्रहन जी, ट्रासफर पर जा रही हो। तल का सथट क र सम्भालनी फिरोगी । बेशक ले चार रुपय ज्यादा ले लो, तल तो मुझे ही देकर जाना । गा “मै अच्छी नरहसे जानता हूं गीता, प्रभू बहादुर का तैल 0 थी पता खच नहीं बरना पड़ना । घमेंश वांबू ने बीच से अपना ज्ञान प्रदर्शि श्या, स्टोर ईशमर जो ठहरा । ८ गीता ने जरा तुनतकर कटा -क्या यह वात गरले दुमे (शा है) प यहा वया कुष्टीम भला है, तुम मर्दों की अपेक्षा औरते ही उयादो भानेती है! सारादिन गली में बैठती ह तो बया इतना भी पता नहीं पतेषा। परतु किसी शरीफ ओरत से यह थोडा ही कहा जाता है कि ऐश्हारे पास हराम का माल है 1 हो। यह ता उनकी होशियारी है । मगर इमे भुटाता थोडे हीहै। यत्र धर्मेश बावू को भागे बोलने की जुरत जाती रही । ही गीता साड़ी से अपने चौडे माये में पसीना पाउती हुई आगे बोली-- रेस शरीफ औरत ने मनस वायदा किया तो निभाया भी । लेकिन बादमे गौर भरता ने उत बैचारी से झगड़ा कर लिया। दिन भर मुझसे भी मुह रे रही । सर, बपया ता काम बन चुका था । यह सम्पूग कथा हर मात गीता के स्वर में गव का समावेश हो आया । कुछ पलों के लिए वह लग भून ही गई कि जिस चौज की उपलब्धि उसे इतना पुलक्ति कर रही भोडो देर पहले उसी ने तौ बह कर इस धरम मलाव ला न्यिः या।




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