मर्यादित | Maryadit

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Maryadit by हरदर्शन सहगल- Hardarshan Sahagal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शादी की आन था न्‍ा सनव हाथ म॑ फूला का गुलदस्ता था। गुलदस्ता सदन के हाथ में दतासे बहुत उसी जोश से कसकर हाथ मिलाया। उतके पीछे ,चार-मौँच आर लोग थ--काग्रेच्युलश स स्वर उभरत चल पथ 1 फारन समूच घर म भागा-दौडी मच गयी। मदन उहे वेठा रहा था युवलणा और उसकी एक सहकर्मी अध्यायिदा नीति, बच्चा द्वारा आदर पानी, सिगरेट, माचिस आदि भिजवा रही थी । और लोग आते रहे। यही सिलसिता जाय बढ़ता रहा। चाय पाती सिगरेट से शु्ट होकर खाना खान, पान चबाने, म्यूजिक की धुन पर पैर बजान और जत में कुछ लागा द्वारा पथ खनखतान तके सारा वायक्रम जहुत बढ़िया गया । सबकी बिदाई दी तो यथारह बज चुके थ। कोट को खूटी पर टांग कर मदन ने अगडाई ली । फिर एक गहरी सास लत हुए सुलक्षणा वी तरफ बढ़ गया--“बधाई बहुत वहुत बधार डालिग ! !! क्सि वात की वधाई दे रह हो? ' सुलक्षणा न ढाथ चाटन हुए बुछ सोचा । तुम्हारी मेहरवानी से सब कुछ बहुत वढिया रहा । तुम्दारे खाते की ता एव स दूसरा बढ़ चढकर प्रशसा कर रहा था। अच्छा। मैं समसी ज्ञादी की वपग्राठ को वधाई। चलो शुक है तुम्हारे मित्रेणण सतुप्ट होकर गय । ऋदन वा थोडी ऊब हुई। थका हुआ ता वह भी बहुत था । तकिन इस बढ्र उत्साहहीतता त्तो नहीं हावी चाहिए। तभी शायद पहली बार उसकी दंप्टि सुलक्षणा के' आट सायी स॑ सन हायथा कपड़ा, वाला पर ठहर गयी। * ओह तुमन खाना खाया कि नही ?” “कैसे खाती ?अब तो भूख भी मारी गयी ।* और बच्चा ने ? हू नींद था रही थी । थोडा थोडा खिताकर सुला दिया। कहीं मेहमाना को कम पड जाता तो क्तिनो फ्जीहत होती | उसी वक्‍त नीति फो काई बुलान जा गया तो जल्दी से उसे भी खिवाकर भेज दियाद्या यू हि.




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