श्री दादू महाविद्यालय रजत - जयन्ती ग्रन्थ | Shri Dadu Mahavidyalay Rajat - Jayanti Granth
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुरजनदास स्वामी - Surjandas Swami
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री दादूसम्प्रदाय का संक्षिप्त इतिहास
दादूजी उनकी इन चेष्टाओं से नहीं घबराये; वे और भी तीन्रता से अपने विचारों
को प्रकट करने लरी । उन्होंने झपने निश्चित सिद्धान्तों पर अधिक जोर देना झारंभ
किया । सांभर उस समय मुगलों के साम्राज्य में था । घ्म के विषय में काजी ही
प्रधान, चीफ जज़ या न्यायाध्यक्ष होता था। दादूजी ने हिन्दू तथा इस्लामी धर्म की.
उन बातों का, जो मजहबीपन से श्रपनाई गईं थीं; व्यथता दिखाना आरम्भ
कर रक्खा था ] मस्जिद्, वाग, रोजा, नमाज, कुवानी आदि.की, समालोचना काजी
जी केसे पसन्द करते ? आरती; पूजा; पाठ, मन्दिर के घण्टे घड़ियाल, बलिदान
का खण्डन पुजारी केसे सहनः करते १ दादूजी दोनों सम्प्रदाय के धर्माधिपतियों
के कोपभाजन हुये । उन्हें नाना प्रकार से कष्ट पहुँचाने का कार्य आरम्भ किया
गया । नगर में हिन्द मुसलमान द्योनों जातियों के व्यक्तिय. को उनके पास जाने
से रोका गया । पञ्चायतियों की तरफ से जातीय दरुड नियत किये गये, बदमाश
गुण्डों से उनको ठीक कराने की बाते सोची गई, मदोन्मत्त हाथी से उन्हं कुचलवा `
देने का प्रयत्न किया गया । इन सव यत्नो सेकाम न बना तव उन्हें भोकसी
(“केदखाने की कालकोठरी >) में बन्द् कर दिया गया । अत्याचारियों की इच्छा
फिर भी पूरी नहीं हुई । दादूजी उनके वश में नहीं श्राये । उन्होंने अपने रवेये को
नहीं बदला । असत्य-की सत्य से हार हुई । निर्दोष सच्चे मददत्मा पर अत्याचार
कमी सफल भहीं हो सकता । अत्याचार के कारण जनता में उनका तर भी महत्व
बढ गया । धर्मान्ध श्यत्याचारियों के अत्याचार ने दादूजी की महत्ता को फैलाने
मे सफल विज्ञापन का कार्य किया । लोग दादूजी. की 'झोर और भी आकर्षित
हुए । उनकी बातों पर जनता का अधिक ध्यान जाने लग। । जितनी अधिक चेष्रा
दादूजी को दबाने की की गई उतनी ही अधिक लोगों की श्रद्धा दादूजी के वाक्यों
मे बद । धूल का कोट आखिर करां तक ॒टठहरता ? मूड आखिर सत्य के सामने
कहां तक टिक सकता ¶ अधिकारियों का, नकली धार्मिको का प्रयास आपसे आप
सन्द् पड़ने लगा । दादृजी अपनी विचारद्दृत। से विरोधियों की बाधाओं को पार
कर गये । नदी की तीव्र धारा रेतीले किनारोंकोही काटा करती है; पहाड़ की
स्थिर चट्टानों पर उसका कोई असर नहीं योता । दादूजी पनी विचारधारा के साथ
आगे बढ़ते गये। जिज्ञासुजन तथा साधक शिष्यो का समूह् अधिकाधिक मात्रा में
उन की सेवा में झाने लगा । उनका सांभर का निवास पांच हः वषं तक इसी
शूप मे चला ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...