श्री दादू महाविद्यालय रजत - जयन्ती ग्रन्थ | Shri Dadu Mahavidyalay Rajat - Jayanti Granth

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shri Dadu Mahavidyalay Rajat - Jayanti Granth by सुरजनदास स्वामी - Surjandas Swami

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुरजनदास स्वामी - Surjandas Swami

Add Infomation AboutSurjandas Swami

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्री दादूसम्प्रदाय का संक्षिप्त इतिहास दादूजी उनकी इन चेष्टाओं से नहीं घबराये; वे और भी तीन्रता से अपने विचारों को प्रकट करने लरी । उन्होंने झपने निश्चित सिद्धान्तों पर अधिक जोर देना झारंभ किया । सांभर उस समय मुगलों के साम्राज्य में था । घ्म के विषय में काजी ही प्रधान, चीफ जज़ या न्यायाध्यक्ष होता था। दादूजी ने हिन्दू तथा इस्लामी धर्म की. उन बातों का, जो मजहबीपन से श्रपनाई गईं थीं; व्यथता दिखाना आरम्भ कर रक्खा था ] मस्जिद्‌, वाग, रोजा, नमाज, कुवानी आदि.की, समालोचना काजी जी केसे पसन्द करते ? आरती; पूजा; पाठ, मन्दिर के घण्टे घड़ियाल, बलिदान का खण्डन पुजारी केसे सहनः करते १ दादूजी दोनों सम्प्रदाय के धर्माधिपतियों के कोपभाजन हुये । उन्हें नाना प्रकार से कष्ट पहुँचाने का कार्य आरम्भ किया गया । नगर में हिन्द मुसलमान द्योनों जातियों के व्यक्तिय. को उनके पास जाने से रोका गया । पञ्चायतियों की तरफ से जातीय दरुड नियत किये गये, बदमाश गुण्डों से उनको ठीक कराने की बाते सोची गई, मदोन्मत्त हाथी से उन्हं कुचलवा ` देने का प्रयत्न किया गया । इन सव यत्नो सेकाम न बना तव उन्हें भोकसी (“केदखाने की कालकोठरी >) में बन्द्‌ कर दिया गया । अत्याचारियों की इच्छा फिर भी पूरी नहीं हुई । दादूजी उनके वश में नहीं श्राये । उन्होंने अपने रवेये को नहीं बदला । असत्य-की सत्य से हार हुई । निर्दोष सच्चे मददत्मा पर अत्याचार कमी सफल भहीं हो सकता । अत्याचार के कारण जनता में उनका तर भी महत्व बढ गया । धर्मान्ध श्यत्याचारियों के अत्याचार ने दादूजी की महत्ता को फैलाने मे सफल विज्ञापन का कार्य किया । लोग दादूजी. की 'झोर और भी आकर्षित हुए । उनकी बातों पर जनता का अधिक ध्यान जाने लग। । जितनी अधिक चेष्रा दादूजी को दबाने की की गई उतनी ही अधिक लोगों की श्रद्धा दादूजी के वाक्यों मे बद । धूल का कोट आखिर करां तक ॒टठहरता ? मूड आखिर सत्य के सामने कहां तक टिक सकता ¶ अधिकारियों का, नकली धार्मिको का प्रयास आपसे आप सन्द्‌ पड़ने लगा । दादृजी अपनी विचारद्दृत। से विरोधियों की बाधाओं को पार कर गये । नदी की तीव्र धारा रेतीले किनारोंकोही काटा करती है; पहाड़ की स्थिर चट्टानों पर उसका कोई असर नहीं योता । दादूजी पनी विचारधारा के साथ आगे बढ़ते गये। जिज्ञासुजन तथा साधक शिष्यो का समूह्‌ अधिकाधिक मात्रा में उन की सेवा में झाने लगा । उनका सांभर का निवास पांच हः वषं तक इसी शूप मे चला ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now