रात के राही | Raat Ke Raahi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.25 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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करमजीत सिंह कुस्सा - Karamjeet Singh Kussa
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गुलवंत फारिग - Gulvant Farig
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का विवाह भी उन्होंने पैसे दे कर किया था | केवल का घर नहीं बसा था जबकि उसके पास चार किल्ले जमीन के भी थे । सोच आगे बढ़ती-बढ़ती केवल के दादा जवंद सिंह के पास जा खड़ी हुई | जवंद सिंह जवान हो गया था। समय पाकर उसके अंग तप उठे | विवाह की सही उम्र देखकर माता-पिता ने जवंदी का विवाह तय कर दिया । विवाह भी हो गया । गौने की रात जंवदी को परों के बगैर ही उड़ाये फिरती थी । एक तो यार-दोस्तों की शह दूसरे मुह-जोर जवानी का सांड़ जैसा जोश और तीसरे पहले तोड़ की बोतल | उस पागलपन और पशु-आवेश के चलते संभाल कर रखी जवानी नरम-नाजुक बरसीम की भांति मुंह-जोर अक्खड़ आदिम ओलों के आगे टूट फूट गयी । दूसरी सुबह यार-दोस्तों के पूछने पर जवंदी ने मिर्च-मसाला लगा कर बातें बनाकर अपना रौब गांठा यार दोस्तों ने उसे शाबाशी देते हुए कहा- वाह रे शेर के बच्चे । यह हुई न मर्दानगी । वह मेरे साले की बीमारी मिंदू ने बातों ही बातों में काम चलाया और ससुराल में जाकर वह बदनामी करवायी कि वहां जा कर मुंह दिखाने के लायक ही न रहा | मैंने तो यार सारे अंजर-पंजर ठीले कर दिये ये अंजर-पंजर ऐसे टीले हुए कि दो-ढठाई साल बीत जाने पर भी नंद कौर की कोख हरी न हुई | पहली रात के खिलवाड़ से उसके भीतर कोई भारी नुक्स बैठ गया था | बहुतेरे साधु-संतों से टोने-टोटके करवाये । भीतर का रोग ऐसा रोग था जो उनकी समझ में ही नहीं आ रहा था | मां बहू के अगले-पिछलों को बुरा-भला कहती | नंदो का शरीर जैसे तख्ता हो गया । काफी समय बीत जाने के बाद लोग जवंदी को जनाना समझने लगे | खूब खुराक खाने पर भी वह अपना कुसूर स्वीकार करने लगा था । भीतरी और लोक-दंत-कथाओं से बचने के लिए उसने नशे पर और अधिक जोर देना शुरू कर दिया । काम रुक गया जमीन रेहन पड़ने लगी । मां दूसरी शादी के लिए कहती तो जवंदी इनकार कर देता । घर की मंदी हालत का अहसास उसे था इसलिए अब और रिश्ते की ख्वाहिश उसे नहीं रही थी | घर की गरीबी और बाल-बच्चों के बिना सूना आंगन देखकर मां नंदो को कोसती कहां से आ गयी यह कलूखत जायेखानी. . . यही घर था जहां कव्वै-कुत्ते भी पेट भर-भर खा जाते थे. . . अब यही घर है. . . यहां राख के बगूले उड़ते हैं. . . हमने कया बच्चे नहीं जने? अगर औरत का इरादा हो तो बच्चा जाता कैसे रहेगा? क्यों बेबे उसे तंग करती हो? उसका क्या दोष? अपने भाग्य में ही नहीं है । ईश्वर की मर्जी के बगैर कैसे हो जायगा. . . अगर परमात्मा की नजर सीधी होती तो. . . अब तक आंगन भरा होता | बेबे बच्चे की खातिर साधु-संतों के डेरों पर भागी फिरती थी | न व्छे ताले पीर ने नंदो को कुएं में रोटियां पकाने के लिए कहा । वह यह भी मान गयी । सास की -- कर ले नी पापने उसका लहदू सुखा देतीं । उस गांव के नरक जैसे कुएं में उतर कर 1. नरम चारा 2.अपनी संतान को खाने वाली एक गाली लि
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