जंगल के फूल | Jangal Ke Phool

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Jangal Ke Phool by राजेन्द्र अवस्थी - Rajendra Awasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ बहाता रहा । परन्तु जिस रात भरिया का बिहाव हुश्रा, उसीःराते वह सामनेके पीपल के भाड़ मे फंदा लगाकर लटके गह ।* सामने पीपल के भाइ की श्रोर अ्रंगुली दिखाते हुए गायता ने कहा, वह रहा पीपल । नरकी पहुरं पंजाबी ने भ्रपने सारे कपड़ों में आग लगा दी श्र शिरिया के साथ मरने को तैयार हो गया । गांव भरमै उसे समाया पर वहं दीवाना धा, न माना । जहां भिरिया को दोरसायाः गया था, वहु रेज जाकर वहां घंटों बैठा रहता था । कई दिन यही करता रहा । गांव में किसीसे न बह बति करता प्रौर न कू खाता-पीता । मोटा-ताज़ा झादमी सूखकर कांठटा हो गया भौर एक रात गांव छोड़कर न जाने कहां चला गया । झ्राज तक फिर उसका पता नहीं लंगा । जाते समय किसीसे कहता रहा है कि फिरिया रोज रात को उससे मिलने बंगले में श्राती है श्रौर कहती है, वह उसके पास श्रा जाए । नपंजाबी चला गया पर, शिरिया का हस्सा रोज़ नडुम नरकी' इसी कमरे में जहां बह सिपाही सोता था, श्रती है । वह उसे खोजती है। कहते हैं कभी भरिया जोर-जोरसे रोत्ती है । कभी गाती है । कभी नाचती है। मरने के बाद शिरिया ख़ुड़ैल हो गई, मालिक, इसलिए उसके जीव से हर कोई -डरता है । मेरे ही लोनों का किस्सा हैं सिरकार । कोबेसाल मिहरिया ने एक पेड़गी* को जनम दिया । यह खबर बताने जब मेरी पेकी* बाहर भाई तो छाती' पर उसने एक श्ररप्रार बटा देखा । पेड़गी का जनम श्ौर श्ररप्रा की सिर पर सवारी | कित्ता बड़ा भ्रशुभ था यह्‌]. उसने श्रसश्राको मारनेके लिए एक पथरा फंका.।' उस पथरे को उठाकर प्ररश्रा भागगया श्रौर उसके बाद पेडगी मारी जैसी रोज़ घुलने लगी काला श्रफसर वहां श्रा पहुंचा था ! एक 'सिलटः मारकर बोला, 'सब श्र जभैटहौ गया सरकार ! हुजूर के मन-बहुलाव के लिए नाच-गाने का भी । गायता की प्रोर मुड़कर उसने तेज़ी से कहा, व्यो रे, सरकार से क्या शिकायत करता था? शिकायत नही मालिकः , ४ के “शिकायत नहीं तो क्या है, हुजूर को क्या सिखाता है ? श्ररुपा पाथर ले .. १. सबेरे . २. दकनाना.. ३. आपी रात ४. घर ५.दो साल पहले... ४. लड़की श ७, जवने लड़की २८. उल्लू ˆ +




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