कौटल्य के आर्थिक विचार | Kotalya Ke Aarthik Vichar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Kotalya Ke Aarthik Vichar by जगनलाल गुप्त - Jaganlal Gupt

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जगनलाल गुप्त - Jaganlal Gupt

Add Infomation AboutJaganlal Gupt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
६३) धिष्डुगुपर शौर फीरस्य--श्रथशान्न मे स गर्हा प्राचाय को ्रषना मत दखशस्यसेदेना इरा है उसने 'कौटल्प का यए सत दे” { स्ति कीरल्य ) कशा । इसमे फुछ पाठर यद्‌ प्रतुमान करते हैं कि य प्रस्प स्वय श्ाचार्य का प्रनाया हप्ा नक्तं दे, परन्‌ उसके शिष्यां में से किसी ने पनाया है। यइ श्रनुमान ठीक नहीं हे, कारण कि अनेक प्राचीन लेस्वकों की यही शैलो रही दे हि श्रमना मत श्रपने नाम से दी दर्शापा साप । दिन्दौं के घनेक दो और कु शलियों में उनके रचपिदा का नाम झाता दे । फिर उस समय तो उसमें सर्देद करने का कोई स्पान ही नहीं रइता सर दम यह देखते ध्िप्र्पशाम्बः के प्रपम झषिकरण के प्रथम अझष्याय के पन्तिम श्कोक में, ठथा द्रिताप 'प्पिकरण क दसंय श्रष्याप के शर्त में मी इसके प्र पकर्ता फा उल्मेम्व “ढोरस्प' के नाम से दो हुदा दे । हाँ, प्रर्प की समाप्ति पर पिपुणुगुम नाम मी दिया गया है । नोतिनार फे र्चपिता सथा फामस्डक नीतिसार क हप ने झानमर्य के लिए पिप्णुपुतर नाम का ही प्रयोग छिया दे । कौररुप नाम के विफ्य में कददा राता है फ यट श्ाचाय का गोभज नाम दे । थ कुल गोग्ीप था । सम्भव दे, इसीलिए, '्राचार्य ने शरनं किप्‌ इस सामाय नाम दा धरपिष प्यत्र किया इं। पए शठा सकना कठिन दे कि इस गाअपाल इस समय मारतवर्ष के फिय नागम पाये जते रई) श्रु, सौरे घीरे श्चाशार्यं क 'दिपएुयुम' नाम का पचार घर गपा ओर “फसल, ए स्पषार े श्नाने लगा) श्रयंशास्रं षो छाएफर कन्य शएषिदारड, पुययङार, रीछादार, नाइककार अदि प्न्प सयक मी, जो प्रायां चे शद काल पीए नो षु, शण नाम का पयोग शूएने लग 1 ध्ुदाएदनः छ स्वरिता फिर पिापदृ सो लैस इन गिने पिशेयशों के सिवाय द्नीर मन ल्ब शरावापं ॐ पिपयुम




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now