कौटल्य के आर्थिक विचार | Kota Ki Arthik Vichar

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Kota Ki Arthik Vichar by जगनलाल गुप्त - Jaganlal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय अस्तावता (क) आचार्य कौटल्य , इस पुस्तक में सुप्रसिद्ध प्राचीन अरथशाज्-प्रणेता आचार्य कौट्ल्य के आर्थिक विचारों का विवेचन है। स्वभावतः इसके पाठको को आचार्य का परिचय प्राप्त करने की इच्छा होगी, और यह परिचय उपयोगी भी होगा । इस विचार से यहाँ संक्षेप में, आचार्य के सम्बन्ध में कुछ बातो का उल्लेख किया जाता है | आचार्य ने अपनी योग्यता, तेजस्विता, रचना-कौशल और बुद्धि- प्रखरता आदि से जर्मन, ऋ्रातीसी श्रादि पाश्चात्य विद्वनों को चकित कर दिया है, और उनकी दृष्टि में भारत का प्राचीन गौरव बढाया है। उसके श्र्थशाख्र के उपलम्ध दो जाने से इस बात का जीवित जागृत प्रमाण मिल गया है कि अच्र से सवा दो हजार वर्ष पूव जबकि अनेक आधुनिक राष्ट्रों का जन्म भी नहीं हुआ था, भारतवर्ष अपनी सम्यता ओर संस्कृति की, तथा राजनैतिक श्रौर आर्थिक उन्नति की घोषणा फर रहा था। अवश्य ही यह खेद का विषय है कि भारत का मखक ऊँचा करने- वाले ऐसे महान आचार्य का कोई प्रामाणिक जीवनचरित्र नहीं मिलता | उनके जीवन सम्बन्धी कई घटनाएँ बहुत संदिग्ध श्रौर विवादग्रस्त द । कितनी दी दन्तकथा प्रचलित ई । प्राचीन भारतीय विद्वानों की माति स्वयं उन्दने अपने विषर्य।मे कुक विशेष प्रकाश नहीं डाला । पुरातन = লাশ ই পীর পাল र দু ক प्र क ह ८




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