कौटल्य के आर्थिक विचार | Kautalya Ke Aarthik Vichar

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Kautalya Ke Aarthik Vichar by जगनलाल गुप्त - Jaganlal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन -सदनमेदूल.. कुछ समय से दिन्दी के श्रधशास्त्र-सादित्य को श्रोर शधिकाधिक ध्यान दिया जाने लगा है । कुछ श्रच्छो-अच्छी पुस्तकें प्रकाशित दो रद्दी हैं । यद्द दृपे का विषय है । श्रावश्यकता है कि दम श्रपने प्राचीन श्रथ-साहित्य से भी प्रये परिचय प्राप्त करते रहें । हमारे प्राचीन ( संस्कृति के ) श्रथशास्त्रों में कौटलीय श्रर्थशास्त्र का स्थान ब्रहुत गौरव - पूणं है, परन्तु इसकी शेली एेसौ गूह श्रौर पाशिडत्यपूण है कि इसके अनुवाद को भी पूरा पढ़ने में मन नहीं लगता । साधारण योग्यतावाले अधिकांश पाठक इससे जैसा चादिए लाभ नहीं उठा सकते । इस अभाव की थोड़ी-बहुत पूर्ति करने के लिए वद छोरीसी पु्तक हिन्दी संसार की सेवा में उपस्थित की जाती है । मूल ग्रन्थ में समाजशास्त्र की कद शालाश्रों, एव कुछ श्रन्य विषयों के भी ज्ञान का अधाद समुद्र भरा हुश्रा है, इमने इस पुस्तक में श्राचाय कौटल्य के केवल श्राधिक विचार लिय हैं, श्रौर, उपभोग, उतपत्ति, विनिमय श्रौर वितरण सम्बन्धी विचारों पर दी प्रकाश डाला है । पढ़ले दमारी इच्छा थी कि इस पुस्तक में श्राचाय॑ कोय्ल्य के राजस्व सम्भन्वी विचार भी दिये जायेँ | परन्तु दमारी “कोटल्य की शासनपद्धति” पुस्तक दिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित दो गयी है, श्रौर उसमें इस विषय का भी विवेचन किया गया है; इसलिए इस पुस्तक में उसे देने की श्रावश्यकता न रद्दी । दमने इस पुस्तक का क्रम श्रर्धात्‌ विषयों का वर्गीकरण श्राघुनिक पद्धति पर किया है, जिससे वतंमान शिक्षा-संस्थाश्रों के विद्यार्थी और शिक्षकों को इसे पढ़ने, तथा प्राचीन विचारों की श्राघुनिक विचारों से तुलना करने मं सुविधा हो |




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