नारीधर्मविचार | Naaridharmavichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथस भाग । ७
नाम से उन के नाम भसिद्ध होते थे । नेसे कि-ङुन्तीपु् युपिष्टिर |
कोाट्यापुज रामचन्द्र, सुमिनापुत्र छक्ष्मण; देवकीनन्दन कृष्णादि पुकारे
जते ये । विदुषी मातायं भयम दी से संस्कृत वोरना सिखा देती थीं। मे ने |
गये गुजरे समयमे भी दो एक वच्चो को पांच छः वपे की आयुं |
धारामवाह संस्कृत वोलते देख अचम्भित होकर पूछा, पता लगा कि |
यदद सब माताओं की शिक्षा का कारण है आज सारा संसार पुकार रहा |
ह क्रि अमुक की ( मदरटग--मादरी जवान ) माठभाषा अमुक है कोई |
नहीं कहता कि अमुक की फादरटंग या पिदरी जवान या पितृभापा क्या |
सक्ता परन्तु माता के विद्वान् दने से बोर सक्ता है इस खिये सव से अधिक |
विद्या की आवश्यकता माता को है । विद्या शब्दद्दी खी लिंग है इसी मकार |
गायत्री ओर थी ( बुद्धि ) भी--ख़ियों के वास्ते विशेषता मकट कर रहे हैं |
“ मातदेवो भव पितदेवो भव आचाय देवो भव ” में माता का शब्द मथम |
सी हेतु ह, जिन्द ने प्राचीन इतिहास नहीं देखे जिनकी स्वाभाविक नियमों
पर दृष्टि नहीं, वे कह देते हैं कि--( यके गुफ्त कसरा जने वद मुवाद ) |
जो उसी समा तक उचित है कि यादि दुष्ट खी न हो तो पुरुष भी दुष्ट
नहीं दोना चाहिये । आगे द्वितीय पद में कहते हूं ( दिगर गुप्त अन्दर |
जहां जन मवाद ) अथात् संसार में खी ही नहीं होनी चाहिये । मैं विनय |
पूबेक ऐसे मद्दाशयों से पूछता हूँ कि यदि संसार में खी ही भ होती तो|
क्या आप निसी शुद्ध और पवित्र मूर्तियां इृष्टिगोचर हो सक्ती थीं ओर |
आप अपनी माता कै सारे उपश्रो को भुखार एसे ृतघ्नी वन इस !
वाक्य उच्चारण के समथेक वन सक्तं थे ! आप यदि माचीन समय की |
सियो की व्यवस्था ओर कत्तन्यता इतिहासो ओर उपनिषदो में देखेंगे तो |
ब्रात दोगा कि पुरुपों की अपेक्षा अधिक शुभाचारिणी और लज्जावती |
ख़ियां थीं ओर उन्हों ने पुरुपों से वद़ कर काम किये हैं । क्या आज |
सम्पूण मनुष्य सर्वं गुणो से सम्पन्न दही ह । आन पुरुष॒ वाहर निकल |
कर पढ़ लिखकर दूरदर्शक हो गये । ख़ियां गृह में रहने से मूर्ख, विद्या
से शून्य रह कर अधेपशु ( नीमवहशी ) वन गईं ! इश्वरीय नियम है कि
User Reviews
No Reviews | Add Yours...