पाईअ लच्छीनाममाला | Paia Lachchhinaam Mala

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बेचरदास जीवराज दोषी - Bechardas Jeevraj Doshi

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महाकवि धनपाल - Mahakavi Dhanpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नहीं हैं. भूतकालके तथा भविष्यकालके विविध प्रकार उक्त भाप्राओमि नही है प्राकृत मै मी मूत भविष्यके कोई विविध प्रकार नही है. उक्त भा्राओमे निसर्गः संगक्तभ्यजन युक्त शब्द अतयत कम है- जो अभी अधिकाधिक दौख पडते हैं वे संस्कृतके संसर्गसे आये हुए है प्राकृत माषामें भी सयुक्तव्यैजन युक्त राब्दर॒ अत्यंत कम हैं. क्रियापदों के प्रयोगोमें उक्त भाषाओं में कोई अटपटी व्यवस्था नहीं है-सरछ समान व्यवस्था है-प्राकृत भाषामे भी क्रियापदोकिं सब प्रयोग एकदम सरल सुगम हैं. नामोंके रूप तथा प्रत्यय उक्त भाषा- ओमें करीब करीब समान होते हैं-प्राकृत भाषामें भी नामोंके रूप तथा ग्रत्यय करीब करीब समान-सुगम होते हैं. हमारी वर्तमान उक्त सब भाषाओं के साथ प्राकृतभाषाका तुलनात्मक अन्वेषण व परीक्षण करनेसे उन भाषा- ओके साथ प्राकृत माषाका विशेषतः अनन्तर संबंध स्थापित हो चुका है. अतः उक्त भाषाओंके इतिहासकों बराबर समझने के लिए, हमारे पूवेजों के साहित्य को समझनेके लिए. और हमारी सस्क़तिके स्वरूपको समझने के लिए, भी प्राकृतभाषाका अम्यास अनिवाय है. इसी हेतुसे विनयमंदिरो से ठेकर विद्यापीठों तक के अभ्यासक्रममें प्राकृत भाषाका अम्यासक्रम नियत किया गया है. गहराईसे तुलनात्मक परीक्षण द्वारा भाषाशाखके अन्वेषकोने भी वेदॉकी भाषाके साथ प्राकृतभाषा का घनिएष्ठ संबंध सिद्ध कर बताया है इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि ग्राकृतभाषा कितनी प्राचीन है. देखिएः-- वेदिकरूष प्राकृतरू प क्रियापद १ हनति हनति हणति, हण २ शयते सयते, सयषए ३ भेदति मेदति-मेदद




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