लोमहर्षिणी | Lomharshini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुनियों में श्रेष्ठ \
भागौ बनने श्राति है ! विभिन्न प्रसङ्गो ,के कारण इन तीनों जातियों का
बेमनस्य बढ़ता दी जाता था ।
तृत्सुझ्रों के प्रतिष्ठित बढ़े-बूद़े समकते थे कि इस समय सृत्सुभो के
राजा सुदास चुपचाप किसी उधेव-बुन में लगे हुए हैं ।
भरतों झौर नगुआओ की सेनाश्रों के संयुक्त सेनापति भागंघदूद्ध कवि
चायमान तीनों जातियों की ऐसी मैत्री को श्रस्वाभाविक मानते थे । ऋषि
जमदग्नि युद्ध-प्रेमी नहीं थे,तो भी अपने पिता क्चीक की ज्वलन्त कीर्ति
सुरक्षित रखने के लिए वे भ्गुओ को लढ़ाकू बनाने में लगे थे ।
मध्यरात्रि व्यतीत हुई थी । राजा सुदास द्वारा रक्षिंत तृत्सुआम गाद्
निद्वा मे सो रहा था | राजा सुदास के काका के पुत्र श्रौर तृत्सुझों के
सेनापति ह्यंश्च का महाल्लय भी इस प्रकार निःशब्द पढ़ा था मानों
सौ रहा हो । दें समय इम महालय के उद्यान क बादे के पास दो पुरुष
स्तढे थे ।
बाड़े के पीछे से पक्षी का शब्द सुनाई दिया । बादर खडे हुए दो
पुरुषों मे से एक ने भी बेला ही शब्द किया । तुरंत ही बहे के भीतर
से पहले एक स्त्री श्रा उसने चारों श्रोर देखा और पुरुषों को पहचान
कर 'घोरे से शब्द किया । उत्तर में बाढ़े के भीतर बहुमूल्य ऊन के वस्त्र
धारण किये हुए एक स्त्री निकली ।
दो पुरुषों में से छोटे ने एकदम आगे बढ़कर इस स्त्री का श्रालिङ्गन
करके चुम्बन लिया !
शुक्र के तारे के प्रकाश में भी दोनों के रक़ का झन्तर स्पष्ट दिखाई
दे रहा था ।
स्त्री हिम के समान श्वेत वेरं कौ धी,पुरष का रङ्ग श्याम था । एक
अर्क्या थी, दूसरा दास था।
दाध-में-हाथ ढाल ये दोनो स्त्री-पुरुष पीछे के गुप्त द्वार से
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