विष्णु पुराण का भारत | Vishnu Puran Ka Bharat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
78.17 MB
कुल पष्ठ :
399
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. सर्वानन्द पाठक - Dr. Sarvanand Pathak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काल ईस्वी सचू की छठी शती है । जिन पौराणिक आख्यानों का संक्षिप्त निर्देदा,
वविष्णापुराण में पाया जाता है, उन्हीं का विस्तृत रूप भागवतपुराण में मिलता
है । और भागवतपुराण का. रचनाकाल घष्ठ या अष्टम झतक है अतएव प्रस्तुत
ग्रन्थ का प्रणयन छठी झती के आरम्भ में हुआ होगा ।
इस पुराण के रचयिता पराशर माने जाते हैं। आरम्भ में महाँष पराशर से
सैन्य विदव की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रइन करते हैं। प्रथम अंश में वशिष्ठ के
पत्र बाक्तिनन्दन द्वारा वकषिष्ठ से प्रश्न किये जाने का भी निर्देश है । अतएव दस
पुराण के आदि रचयिता वशिष्ट हैं, पर आधुनिक रूप के कर्त्ता पराद्यर माने
गये हैं क्योंकि उनका कथन है कि यह विष्णुपुराण समस्त पापों को नष्ट करने'
वाला, समस्त शास्त्रों से विशिष्ट पुरुषा्थ को. उत्पन्न करनेवाला है । इसमें वायु,
बहा और मत्स्यपुराणों की अपेक्षा अधिक मौलिक और मंहत््वपूर्ण सामग्री
संकलित है । यथा-- वि
“पुराणं बेष्णवं चेतत्सबकिल्विषनाशनम् ।
विशिष्ट सर्वशास्त्रे्य: पुरुषार्थोंपपादकमू ॥।”
कर विष्णुपुराण ६८) हे
बेदव्यास के पिता का ही नाम पराशर है ।
ऋक संहिता के ( १1२२1१६-२९, रै८५।७, है। ०४५, ११४४ २-६,
शश५५।१-६, १।१५६।१-४, २६४३६, री र८६। ९०, २१३, २२२१,
२६1४, रेड रि४, रेप ०, ४ारा४, दरै।७, ४1१८३ १, ८८९1९,
इत्यादि ) ब्ताधिक मन्त्रों में विष्णु का निर्देश आता है। सामवेद, यजुरवेद
और अथवंवेद में भी विष्णु के माहात्म्यप्रकाशक मन्त्रोंका अभाव नहीं है । ब्राह्मण,
आरण्यक और उपनिषद् काल में ब्रह्म का महत्व विकसित हुआ था, पर पुराण
काल में त्रिदेव अर्थात् ब्रह्मा; विष्णु, महैश, का महरव ब्रह्म से सी - अधिक, व्यापक.
रूप में जनता के समक्ष आया,. जिससे जन-सामात्य को बड़ी शान्ति प्राप्त हुई । .
मगवसत्व
विष्णु-पुराण में सृष्टि के त्राता और, पोषणूकर्ता के. रूप में भगवान् का
चित्रण हैं । बताया गया हैं कि शिश्ुमार ( गिरगिट या गोध ) !की तरह आकार
वाला जो तारामय रूप देखा जाता है, उसकी फुूँछ में घ्रुवतारा स्थित है । यह
घ्रुवतारा घूमता रहता है और इसके साथ समस्त नक्षत्रचक्र भी । इस दिशुमार
स्वरूप के अनन्त तेज के आश्रय स्वयं विष्णु हैं । इन सबके. आधार स्वेश्वर
कब्ज २ न बैक लि
१ विशेष ज्ञान के लिए इसी ग्रत्थ का प्रथमादि देखिये ।
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