ऋग्वेद तृतीय खण्ड | Rigved Khand 3
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
636
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)+ ८{५५५। स्, ३६] दि ६१६
४ मत्त कर देना ॥ ३ देवताशी ! हे यझ् से श्रझूट श्ररने ! तुम यहाँ
विधिव होकर इसको गौ धख श्रादि घन का सुख दो प्रश्य [३०]
३९१ श्रक्तं ( पाँचया झनुवाक )
[है ऋषि--मजुर्ववस्वन: । देवना--ईज्यास्तदो, यडमानपररसा थ दुस्पती,
दम्पत्योराग्रिषः । दन्द्-गायत्री, श्रवुष्टप्, पक्तिः }
) यजाति यजात इत्सुनवच्च प्रचानि च । व्रह्म दिन्द्रस्य चाकनत ॥१
रश्व यो श्रस्म सौमं ररत प्रा्धिरम् 1 पारित्तं गक्रौ श्रमः ॥२
स्यि द्युमां म्रमद्रयों देवजून. से यूथुवत् ' विश्वा वन्वद्र्मित्िया ॥३
पस्य प्रजावती गृदेश्सश्वन्ती दिवेदियें । इच्य वेनूर्मनी दु ४
7 दम्पर्नौ समुनसा सुनुत श्रा च धारनः देवानो सिंत्ययायिरा 1५ 15 ८
जो यमान यारम्मार यत्त करता ह्र सोमामिपत्र या पुरीडारा पाक
पता हैं श्रौर इन्द्र की स्तुति काने की चारस्थार इच्छा क्वा ई, जो
'जमान धुरोदारा श्रीर् गव्य निध्रित मोम इन्द को देता है, इन्द्र उसकी पाप
गगा रते द १-२ पर देवताशों द्वारा मेडा गया दृमच्ठा हुआ रथ डसी
गरनमान छ होता ६ श्रौर यह च्रं ङी चाधाय को न्ट चता हु ऐश्वयों
परहित सग्धि को ताक्ठ करता (2 ५ दर यजमान ेधरमेपुग्रादिमे
प्रम्प्ठ धविनाशी घन शरतिदिन प्राह होता है ॥ ४ ॥ हे देवगण ! जो पति-
नी यजमान ममान मन वाले होड चभिधव करते झऔर दुल्ने से सोस को
न कर उसमें सम्यादि का मिध्रण करते हुए सघुर बनाते ६ -* 1९५ ३८ }
पति प्रायाव्यों इत: सम्यंड्चा वड़िरादाति । ने ना वाजेपु वायतः ॥६
व देवानामपि हल: सुमति न जुगुलत. श्रवो वुहुद्विवासतः 11७
पचिणा ता कुमारिणा विश्वमायुर््य श्तुन: उभा ट्रिप्यपेयसा (८
गीतिहोत्रा कृतनर दयन्यन्तामूनाय्र कम् 1
परभूषौ रोमं इतो देवेषु छतो दवः ॥६
शमं परठतानां बृखीमहे नदीनाम् । त्रा विष्णोः सवाव । १० 1३;
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