कालिदास के सुभाषित | Kalidas Ke Subhashit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कालिदासके चुभापित श्श्रू है । वार-वार वह उसकी श्रेणिवो-चृद्ध लायो, रत्नौपधिनपदा, जीवजन्तुओ, जनविश्वासोकी चर्चा करता है। “कुमारसभव की समू “मेघदूत का कमसे कम समू वा उत्तर भाग हिमालयसे दी पु मेघमे भी आरम्भते अन्त तक एक ही साथ ध्वनित हुई हैं, अलका पहुँचने की । अलका हिमालयकी कलानगत उन अंचाइ्योम है पैठकर घन भवनके चित्रोको अपने जलसे गोला कर थाने है । “'विडुमों- बंनीय का चौथा गौर “नाकुन्तल का सातवाँ अक हिमालयने ही संपर्क रखते हैं । इसी प्रकार “रघुबण के पहले, चौथे और सातवें सर्ग भी उनी पर्वतमालाके दृष्य प्रस्तुत करते है ! यदि 'मेघदूत के यक्षकी विरह-तटपन किसी अदमें भो वविषी आन्मानु- भूति है तो निव्चय ही यलकी प्रेरणा-भूमि हिमालयाल्चलीय अस्त है और तब कालिदानका जन्मस्वान उसी दियामे होना समाव्य प्रतीत होताहू। एक वार हिमालयकी परिधिमें उस जन्मस्यानके लाजाने पर कद्सीरको अपने आप उसका श्रेय मिल जायगा। फिर अनेक प्रमाण उस दिलामें स्वतन्त्र रूप से भी सकेत करते है। कालिदास अनायास कदमीरके उत्तरी भागका, और तर्कत कथ्मीरका भी, संविस्तर यगेन बर्ते है । मिन्घकों घाटी ( कर्राकोरम ) उन्हें विशेष प्रिय हैं। कम्मीररी कथागों, स्थानों और दृध्योंका वर्णन कविंके काव्य-भग्दारमें अपने आप खुल पटा हैं। कण्मीरकी प्रयाओ, बिय्वानों जौर सामाल्फि रीतियोका जो वर्णन हुआ हैं बह कुठ ऐना है जिनसे स्वदेण-प्रेमको मररु आती है, जिसे कइमीरका निंवानी ही कर सकता था । उनें प्रति बस्ती सजग आरमीयता ऐसी है कि लगता है वह उनके बोच हो पत्म हो 1 पण्डितोका मत्त हैं कि कालिदासका निजी घर्म-विश्यास उस प्रत्यभिया-दर्सन में है जिसका दूसरा नाम कब्मीरी सेव-घर्म है, इसचिए फि उनएा थारग्भ और विस्तार कब्मीरमे ही हक था और दबिकें काउगें यथ्मीरण दायर समान पराािएटट अभी उसका प्रदार नहा हा सका था 1 सदा सदाम समान ईद सस्ससस कं ”् के यम ज जा




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