सौन्दरनन्द काव्य | Soundarananad Kavya

Book Image : सौन्दरनन्द काव्य  - Soundarananad Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० सौन्द्रनन्द लगता था, उसके भीतरी बाजार श्रच्छी तरह विभाजित थे, वह महर्लो की माला से घिरा हु था, जान पढ़ता था जेसे वह नगर हिमा- तय की कुक्षि हो ॥४३॥ वेदवेदाङ्गविदुषस्तस्थुषः षटसु कमसु । शान्तये बुद्धये चेव यच विप्रानजीजपन्‌ ॥४४॥ वेद-वेदा जो के जाननेवाले तथा छुः कर्मो' में रत रहनेवाले ब्राह्मणों से उन्होंने अपनी शान्ति श्र वृद्धि के लिए वहाँ जप करवाया ॥४ ४॥ तद्ध मेरभियोक्तणां प्रयुक्तान्विनिवृत्तये । यत्र सेन प्रभावेन भ्रत्यद्ण्डानजीजपन्‌ ॥४५॥ उख भूमि पर श्राक्रमण करनेवालों को हटाने के लिए जो सेनिक नियुक्त थे उनके द्वारा उन्होंने श्रपने प्रभाव से विजय प्राप्त करवाई ॥४५॥ चारित्रधनसंपन्नान्‌ सलतञ्जान्दीघेद शिंनः। अहं तोऽविष्ठिपन्यत्र शूरान्दक्षान्‌ कुटुम्बिनः ॥४६॥ सदाचार रूपी धन से सम्पन्न, लञनावान्‌, दीघंदर्शी, योग्य, शूर श्नोर दक्ष कुटुभ्विर्यो को उन्होने व्ह बसाय ॥४६॥ व्यस्तैसतस्तेगौयक्तारमतिवाग्विक्रमादिभिः | कमसु प्रतिरूपेषु सचिवांस्वान्भ्ययुयुजन्‌ ॥ ४७ बुद्धि वाणी श्रोर पराक्रम ादि भिन्न भिन्न गुणो से युक्त मंत्रियों को खनके श्चनुरूप कर्मो मँ उन्होने नियुक्त किया ॥४७॥ ४६-- कुक्षि = उदर. गुफा, उपत्यका ।




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