ज्ञान सरोवर भाग - 3 | Gyan Sarovar Bhag - 3

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Gyan Sarovar Bhag - 3  by हुमायूँ कबीर - Humayun Kabir

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रह्मांड की फहानी 7 हवा के घेरे से बिल्कुल बाहर हो जाती होगी श्रौर धीरे-धीरे वहा पानी की कमी पडने लगी होगी । तब पानी की उस कमी को पूरा करने के लिए वहा के इजीनियरो ने बडी-बडी नहरें बना कर मगल के उत्तरी श्रौर दक्षिणी ध्रुवो से पानी लाने का प्रबस्थ किया होगा । । लेकिन श्राजकल के ज्योतिषियो की राय है किं मगल पर कोई नहर नही है । कही-कही धब्बे जरूर हे, जो साफ नही दिखाई देते । उन्हें देर तक देखने की कोशिश में झाखो को यह धोखा हो जाता है कि वहा लकीरे हे । इस बात को सिद्ध करने के लिए एक ज्योतिषी ने एक कागज पर श्रलग-श्रलग, वहुत से छोटे-छोटे धन्वे लगा दिए भौर. उसको वहत दर रख कर उसने लोगो से देखने को कहा । बहुत दूर रसे जाने के कारण कागज के वे नन्हे धन्वे दूरबीन से भी भ्रलग-ग्रलग नही दिखाई दिए । एेसा लगा कि कागज पर लम्बी सीधी लकीरे चिची हे । इस तरह उस ज्योतिषी ने सावित किया कि मगल पर जो काली लकीरे दिखाई देती है वे लकीरे नही हे, बल्कि मगल की सतह के धब्बे हे । भ्राजकल के ज्योतिषी यह्‌ भी नही मानते कि मगल पर जीव-जतु हो सकते है, क्योकि उनकी राय में वहा की हालत ऐसी नही है जिसमे कोई जानवर जिन्दा रह सके । इसमे कोई सदेह नही कि मगल बहुत ठडा है । वह पृथ्वी की अपेक्षा सूर्यं से अधिक दूर है । पृथ्वी को सूर्य की जितनी गर्मी मिलती है, मगल को उसकी श्राधी भी नहीं मिलती । इसलिए मगल पर गर्मी की दोपहरी में भी कम-से-कम उतनी ठंड होती होगी, जितनी भारत में फरवरी के महीने में सुबह-नाम होती है । मगल पर हवा का घेरा भी इतना पतला होगा कि वहा सास लेना नामुमकिन होगा । पृथ्वी के पाच ही मील ऊचे पहाडो पर चढने में श्रादमी को नाक मे हवा से भरा हुमा तोबडा वाध कर, नकली तरीके से सास लेना पडता है । फिर मगल पर तो हवा इतनी पतली होगी जितनी पृथ्वी पर लगभग 11 मील की ऊचाई पर होती है । यह सही है कि जब मगल के उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव की बफं पिघलती दिखाई देती रहै, तव॒ उसके निचले भाग की ग्रोर हरियाली की लकीर-सी उभरती दिखाई देती है । इसका यह्‌ मतलब लगाया जाता है कि बफं पिघलने पर जब पानी ध्रुवो की श्रोर से बीच की श्रोर बहता है, तो वहा हरी काई, घास-पात या श्रनाज की फसलें उग जाती होगी । लेकिन इसका कोई पक्का सवूत श्रभी तक नही भिला है ।




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