तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा | Tirthakar Mahavir Aur Unaki Aacharya - Parampara
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
486
श्रेणी :
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No Information available about डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मार्ग भी नहीं है । भोगी ओौर योगीका मागं एक कैसे हो सकता है। तभी तो
गीतामे कहा है- ल्
या निज्ञा सबंभतानां तस्यां जागति संयमो ।
यस्यां जाग्रति मृतानि सा निशा पदयतो मुने: ॥
... 'सब प्राणियोंके लिए जो रात है उसमें संयमी जागता है गौर जिसमें
प्राणी जागते हैं वह आत्मदर्शी मुनिकी रात है ।' | |
इस प्रकार भोगी संसारसे योगीके दिन-रात भिन्न होते हँ । संयमी महावीर-
ने भी आत्म-साधनाके दवारा कातिक कृष्णा अमावस्याके प्रातः सूर्योदयसे पहले
निर्वाण-लाभ किया । जैनोके उल्केखानुनार उसीके उपलक्षमें दीपमालिकाका
आयोजन हुआ और उनके निर्वाण-लाभको पच्चौस सौ वषं पूणं हुए । उसीके
उपलक्षमें विद्वमें महोत्सवका आयोजन किया गया है ।
उसीके स्मृतिमें 'तोथंकर महावीर और उनकी आचायं-परम्परा' नामक
यह बृहत्काय ग्रन्थ चार खण्डोंमें प्रकाशित हो रहा है । इसमें भगवान महावीर
और उनके बादके पच्चीस-सौ वर्षोमें हुए विविघ साहित्यकारोंका परिचयादि
उनको साहित्य-साघनाका मूल्यांकन करते हुए विद्वान् रेखकने निबद्ध किया
है । उन्होने इस ग्रन्थके लेखनमें कितना श्रम किया, यह तो इस म्रन्थको
आद्योपान्त पढ़नेवाले ही जान सकेंगे । मेरे जानतेमें प्रकृत विषयसे सम्बद्ध
कोई ग्रन्थ, या लेखादि उनकी दुष्टिसि ओझल नहीं रहा । तभी .तो इस अपनी
कृतिको समाप्त करनेके पदचात् ही वे स्वगत हो गये भौर इसे प्रकाशमें लनेके
लिए उनके अभिन्न सखा डॉ० कोठियाने कितना श्रम किया है, इसे वे देख नहीं
सके । 'भगवान महावीर ओर उनकी आचायंपरम्परा'में लेखकने अपना जीवन
उत्सगं करके जो शरद्धाके सुमन चढ़ाये हैं उनका मूल्यांकन करनेकी क्षमता
इन पंक्तियोंके लेखकमें नहीं है । वह तो इतना ही कह सकता है कि आचार्य
नेमिचन्द्र श्ञास्त्रीने अपनो इस कृतिके द्वारा स्वयं अपनेको भी उस परम्परामें
सम्मिलित कर लिया है।
उनकी इस अध्ययनपूर्ण कृतिमें अनेक विचारणीय ऐतिहासिक प्रसंग आये
हैं। भगवान महावी रके समय, माता-पिता, जन्मस्थान आदिके विषयमें तो
कोई मतभेद नहीं है। किन्तु उनके निर्वाणस्थानके सम्बन्धमें कुछ समयसे
विवाद खड़ा हो गया है । मध्यमा पावामें निर्गाण हुआ, यह सबंसम्मत उल्लेख
है। तदनुसार राजगृहीके पास पावा स्थानको ही निर्वाणभूमिके रूपमे
माना जाता है । वहां एक तालाबके मध्यमे विकता मन्दिरमे उनके चरण-
भाक् कथन : ११
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