कवि प्रसाद की काव्य साधना | Kavi Prasad Ki Kavya Sadhana

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Book Image : कवि  प्रसाद की काव्य साधना  - Kavi Prasad Ki Kavya Sadhana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय कह व्यक्तिगत जीवन का; निजी सुख-दुःख का, समाज श्रौर मानवता के सतत प्रवाइशील बुलन्दुःख श्रौर जीवनमयी सवेदनाओं के साथ समन्वय श्रौर सामझस्य होता है। इसीलिए मै कदता हूँ कि साहित्य-समीक्षा एक जटिल समस्या भी दे | जीवन किसी रासायनिक सश्लेषण की क्रिया-मात्र नदीं है । उसे समभकने के लिए न जाने कितने सस्कारों, कितनी अनुभूतियों श्र समाज एवं. राष्ट्र के कितने विचार-क्रमों के घात-प्रतिघात में से गुज़रना पड़ता है ।' * फिर रचनाकार के जीवन-क्रम का साहित्य में जो प्रकाश पढ़ता है, वह भी शैली, समय की गति एवं भाषा की व्यंजना-शक्ति के श्रनुसार कई रगों में सामने झाता दै । इसलिए; बहुत बार तो सुलभातेनसुशभाते यह समस्या श्रौर भी जटिल हो जाती है | भ जव “प्रसाद” जी पर आलोचना लिखने जा रहा हूँ तब ये सभी बातें मेरे ध्यान में हैं ।. मैंने अपने विवेक को बार-बार तौला है और बार-बार दृदय की दुर्बलता से प्रश्न करता रहा हूँ कि मित्रता का पद्षपातत मुक्ते वहाँ जुमा तो न लेगा जहाँ समालोचकं का न्याय ही प्रघान होना चाहिए। इस सापन्तौल में मैंने श्रपने जीवन के झ्नेक बषष बिता दिये हैं और श्रंत में श्रपने को समालोचना लिखने के लिए तैयार कर पाया! मै यह दावा नदीं कर्ता किं मेरी निजी सदातुभूति मुके श्धर-उधर न उड़ा ते जायगी, केवल शाशा दिना सकता हूँ कि मैं जान-घबूभकर विवेक को भावना की श्राँधी में उड़ न जाने दूँगा | >८ तर >4




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