तत्त्व - चिन्तामणि भाग - 4 | Tattv - Chintamani BHag - 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
588
श्रेणी :
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No Information available about जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महारज युधिष्ठिरे जीवनसे आदं शिष्ला ५
इनकी एक न सुनी 1 तव खचार होकर अर्जुनने घोर युद्हयारा
गन्धर्वको परास्त कर दिया । तत्पश्चात् परास्त चित्रसेने अपना
परिचय दिया और दुर्योधनादिको कैद करनेका कारण बताया । यह
सुनकर पाण्डवोंको वडा आश्चर्य हुआ । वे चित्रसेन और दुर्योधनादिको
लेकर धर्मराजके पास आये | धर्मराजने दुर्योधनकी सारी करवूत
सुनकर भी बड़े प्रेमके साथ दुर्योधन और उसके सब साथी
वंदिर्योको युक्त करा दिया ] फिर उसको स्नेहपूर्वक आश्वासन
देते इए उन्होंने सबको घर जानेकी आज्ञा दे दी । दुर्योधन
खलित ` होकर सवके साथ धर खट गया | ऋषि-सुनि तथा
ब्राह्मण छोग धर्मराज युधिष्ठिरकी प्रशंसा करने खगे !
यह है महाराज युधिष्ठिरके आदरं जीवनकी एक धटना ।
निर्वैरता तथा धर्मपाछनका अनूठा उदाहरण | उनके मने दुष्ट
दर्योधनकी काटी करतूतोको सुनकर भी क्रोधकी छयाका भी स्पर्श
नदीं हआ । इतना ही नही, उसके दोषोकी ओर उनकी दृष्टि भी
नहीं गयी । बल्कि उनका हृदय उष्टे दयासे भर गया । उन्होंने
जल्दी ही उसको गन्धर्वराजके कठिन बन्घनसे मुक्त करवा दिया ।
यहींतक नहीं, उनकी इस क्रियासे दुर्योधन दुखी और लज्नित न हो;
इसके लिये उन्होंने प्रेमपूर्ण वचनोंसे उसको आश्वासन भी दिया |
मित्रॉंकी तो बात ही कया दुःखमे पड़े हुए शन्नुओके प्रति भी हमारा
क्या कर्तव्य है, इसकी शिक्षा स्प्टरूपसे हमे धर्मराज युधिष्ठिर दे
रहे हैं |
न.
ध्य्
यह बात तो संसारमें -प्रसिद्ध ही है कि दर्योधनने कर्णकी
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