व्यावहारिक सभ्यता | Vyavaharik Sabhyata

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Vyavaharik Sabhyata by गणेशदत्त शर्मा गौड़ - Ganeshdatt Sharma Gaur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ धार्मिक व्ययहार (२३ ) वृद्ध, ंगद्दीन, ख्री, और कोट आदि भयंकर रोगप्रस्त मिक्लुओ को अपने घर कै द्वार पर भिन्नार्थी आया देख कर मत मिड़को, बल्कि नस्र चचनो से उसके चित्त को प्रसन्नता देते हुए यथा शक्ति सहायता दो । ( २४) सूने मदिरों की प्रतिमाओओ पर, कथरों पर तथा धार्मिक चिह्ठी पर थूंकना, पेशाब करना या अन्य किसी श्रकार से अपमान करना जंगलीपन है 1 ५ ) भारतीय अय-सभ्यतां सिखाने के लिए हमारे देश मे पहिले गी सालद स्कार प्रचलित है । इन्दे मभ्यता की सोलह चावियों कह्द सकते हैं । ज्र से देश में इनके अश्रद्धा हुई तभी से भारत सभ्यता के गहरे यते में गिर गया । अतएव जिन्हें अपनी रॉँवाई हुई प्राचीन सभ्यता प्रात्र करना है, उन्हे संस्कारों से प्रेम करना चाहिए । चरभीं तक्र जिन सस्कारा का समय शुजर चुका, उन्द्‌ जने दो; किन्तु अब जो हो सकते हा उन्हे तो अवश्य ही करो । ( २६ ) श्राप यदि किसी ्रतिमा, चित्र या धर्म-पन्थादि के माननेबाल नहीं हैं तो उसका अपमान भी न करें । जब कि आप उसे कुछ भी नहीं समकते तो अपमान किस का ? यदि अपमान किया तो यह सिद्ध हो जावेगा कि आप उसे कुछ न कुछ अवश्य मानते है । ऐसे व्यक्ति समाज में डदर्ड और उच्छुंखल कहे जाते है। शिवा- जी नेभी छूट में मिले हुए शतुओं के कुरान आठि धार्मिक पुस्तकों




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