हिमालय | Himalay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Himalay by जगन्नाथ प्रसाद मिश्र - Jagnnath Prasad Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जगन्नाथ प्रसाद मिश्र - Jagnnath Prasad Mishra

Add Infomation AboutJagnnath Prasad Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
गांधी : महात्मा र क्रान्तिकारी दिया है । जागृत चेतना श्रोरुःश्रटव विद्वा के श्रभाव मे मानव जाति का भविष्य दिनो-दिन विगता ही जायगा 1 „ वहु विश्वाप्त जौ किसी विजित जाति के हृदय में दहशत या श्राशंकाजनित विद्धे त पैदा करे, वह विश्वास जो जीवन के उद्देश्य का मार्ग प्रदास्त करे, वह्‌ विश्वास जो किसी राष्ट्र को कोई विद्वेप श्रघिकार देने का वादा न करें शोर जो मानवं समाज पर श्रानेवाली विपत्ति के प्रति विद्रोही बन जाय, उस तरह का विद्वास केवल गाँधीवादी श्रादर्शों में है। यही दिड्वास, यही श्रादर्श मानव जाति के- परस्पर के साट्विक सम्बन्ध में फैलनेवाले जहर के लिए गोथे था ईसा मसीह का रुप घारण कर सकता है । सत्य झ्ोर प्रेम को जीवन की वास्तविकता स्वीकारं कर गाँधाजा ने श्राधूनिक विचारधारा में कान्ति उपस्थित कर दी । इस तरह उन्होने विशव की राजनीति मे एक श्रभूतपूवं उदाहरण उपस्थित कर दिया, जो यदि उस प्रवृत्ति को रोकने में सहीं तो उसके प्रमाव को कम करने मेँ श्रवद्य समयं होगा, जो प्रवृत्तिप्रम श्रौर मानवता की शान्तिर्मे विद्वास न कर एकच प्रविक्रार का उपासिकहूं। हृदय की पुकार, श्रन्तरत्मा की प्रेरणा या दिव्य प्रकाश श्रादि शब्दावली के बारे में भले ही किसीका विरोध हो--शब्द के प्रयोग के हम ,कायल नहीं, लेकिन श्रन्तदू ष्टि के बिना राजनीति शून्य श्रौर चगण्य है । वही रहस्यवादी या श्र्ध्यात्म- वादी, जिसे ईइ्वरीय प्रेरणा में विश्वास है श्रौर जिले उसकी शान्ति शोर सहारे पर भरोसा है, क्षतविक्षव श्रौर घलिघसरित मानवता को शान्ति प्रदान कर सकता हु। यदि विश्व का नये सिरे से निर्माण करना है, तो ढाँचा बनानेवाले को श्रध्यात्म के श्राघार पर ही उसकी नींव डालनी होगी । यूरोप के पुनरुद्धार के लिए.बहुत गहरी तँयारा की जरूरत है, जो श्रत्यधघिक साहसिकता की माँग रखता है । श्रल्डस ह्वषके के इस कथन में सत्य का समावेश ह क्रि “प्रघ्यास्मविहीन विद्व श्रन्धकारमय भ्रौर पागलों कासंसार होगा । | ` जिस यूरोप का स्वप्न हिटलर ने देखा था, वह्‌ मरा चुका है। लेकिन उसकी छाया श्रमीतक कायम है श्रौर उसका प्रमाव वतंमाच विदं में नष्ट नहींहौ सक हं । राजनीतिन्नो की काली करतूत रीर श्रमजा सदाघारिके भ्रष्टता का विस्तार कर रही हैं। भोतिकवादी राष्ट्र पग-पग पर इस वात का प्रमाण दे रहे हैं कि परमाणु बम के सहारे ही सारा विदव चल रहा हूं। इससे यूरोप की विभीषिका दिनोंदिन बढ़ती चली जा रही है। लेकिन श्राध्यात्मवादी ऋषि-महर्षियों की. भांति महादमाजा राजनीति को सदाचार श्रोर भ्रध्यात्म का भ्रंग बनाने की सतत चेष्टा (प अश श क = ... -. ....... ... थ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now