तीर्थकरों का पावन चरित्र | Tirthakaron Ka Pawan Charitra

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Tirthakaron Ka Pawan Charitra  by आचार्य श्री जिनचन्द्र सूरी जी - Aachary Shri Jinachandra Suri Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निकली हुई जयध्वनि से आकाश मण्डल गूँज उठा । उसके बाद सभी स्वर्गो के इन्द्रो ने भगव्रान के मस्तक पर एक साथ जल की धारा छोडी 1 मभिषेक की समाप्ति होने पर इन्द्र ने जगत की शान्ति के लिए उच्च स्वर से प्रार्थना की । जब इन्द्राणी ने वस्त्-आभुषणो से अलकृत कर बालक जिन को इन्द्र की गोद में दे दिया उस समय वालक का सौन्दयं देखकर इन्द्र भी मुग्ध हो उठा गौर भक्तिभाव से स्तुति करने लगा । स्तुति कर चुकने के चाद जिस उत्सव के साथ अयोध्या से सेरु तक आए थे उसी उत्सव के साथ मेरु से अयोध्या भा पहुँचे। इन्द्र ने भगवान को गोद में लेकर महाराज नाभि के घर मे प्रवेश किया, उस समय नाशिराज मौर मरुदेवी अपने प्रियदर्शी पुत्र को देखकर बहुत खुश हुए और इन्द्र को आश्चर्य भरी नजरो से देखने लगे । उनके प्ररनवाचक नजरो को देखकर इन्द्र ने जन्मासिपेक की सारी कथा सुनाई । इन्द्र से अपने पुत्र के जन्माभिपेक की कथा सुनकर माता-पिता आस्चयं सहित आनन्द विभोर हो उठे । इतने मे ही अयोध्या नगरी के वासियों की आकाश को गुन्जित करने वाली आावाजो ने उन्हे सचेत किया । भानन्द भमौर मस्ती मे सारे नगरवासी नाचते, गाते गौर वाजे वजाते चले हुए आ रहे थे। अयोध्या- वासियो को हष-विभोर देखकर इन्द्र का अग-अग खुशी से झूम उठा इन्द्र को नाचता हुआ देख गघर्वों ने सुमघुर सगीत बजाना आरम्भ कर दिया, फिर तो समा बेघ गया और अनेक देव-देवागनाएं इन्द्र के साथ नृत्य करने लगी, महाराज नाभि तया मरुदेवी उस आश्चर्यजनक नृत्य को देखकर बहुत ही चकित हुए । उसी समय बालक का नाम 'कऋषभ' रखा गया, क्योकि प्रथम, वहं विष्व मे श्रेष्ठ था, दूसरे वह्‌ श्ष्ठवमं से शोभायमान था, तीसरे, माता ने उसके गर्भावतरण के समय स्वप्न में ऋषभ (बैल) को देखा था । इस तरह जन्मोत्सव मनाकर इन्द्र देवो के १७




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