ग्रहण लगा तथा अन्य राष्ट्रीय कविताएं | Grahan Laga Tatha Anya Rashtriy Kavitayen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पा
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प, षी
माँ, छेड़ो श्रपनी वीणा फिर एक बार
गूँज उठे जल-थल-ध्रम्बर अपार
लेकिन, यह राग हो अपने आप में तूफ़ान,
ताज्जुब से देखे दुनिया-जहान,
शत्रु की हिम्मत हो पस्त,
वहु लगे जैसे कोई तारा श्रस्त।
ग्रौर, जीवन हो निवरा,
सिम ढला
सोना जैसे श्रभी-श्रभीहो
च से तपकर निकला
यह चीन, यह चाऊ-एन-लाई,
जिनको हमने कभी समा था भाई
जिन पर विश्वास केर `
हमने गंवा दी
जिन्दगी की सारी कमाई,
म्रा जाय होश मे,
समभ क्या सुखा, क्या नमी,
दोस्ती को समभ दोस्ती, `
ग्राद्मी को जाने आदमी।
श्रालिर वि
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