साहित्य - प्रारम्भिका | Sahitya - praranbhika

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Sahitya - praranbhika by कमलेश - Kamalesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) आई थी जिसके साथ व चला गया था। इसने उस जमानमें शिक्षा पाने के उपरान्त अपना जीवन भगवत भजन में अर्शि फर दिया था, उससे भगवत गीता, अ्रध्यत्म रामायग एड्ाद्राराव, ट त्राहि एमन का गुजगता मे 'प्रनुवाद 9 इसके पा मे रस, शब्दालभझार, आदि स्वाभाविक रूप से) ग्राज्ञाते हैं । उसके पर्दों में लोगों दो तथा गाने वाने को खूब रस तथा परेरा मिली, एव कारणत लोक विय हो गया था । उसकी शेतरी बहुत ही प्रिय तथा शान-पूर्ण है और वह भगवान म भगीे हुई € 1 पढ़ लिखता हैं । एर्नि मारग दशनो, नदी कायर म न्नाम तनि! प्रेम नो पथ न्याग मेधी, प्रम नो पय द्धे स्यार) भक्ति ज़ग मां फरे नर सोइ, আক গর অহ হাল ন চাহ प्रीतमदास # पराम मच्रिचार, उची परेरा, ३ साथे यहुत हैं सुन्दर फाव्य शक्ति हूँ । प्री हपरान्य दयाराम सता हैं । यह सांथारिक था तथा भोग व्िचास में रमता रहा था | কিন্ত নানান पी फतियों प्रीतमद्रास से खधिण दिप्ट है शौर श्रान्त भी गुतरानी লা? বক্তা वद्र मून्य नथा श्रादरग् ह] सकी भाषा मरी तधा सुत्दर है । इसने अपने वने রাশ से की याठप लियना आरनस्म झरा दिया धा। টান ५ ৯ ५ तर शार्स रह भ के थी नोर स्र ग डा क ৯ সি রি পু [र क এ साइट भष शुपरारी ब्रात म निना আলো তু । তলজি, হনব তালা লিল হাংরি, বালক শ্রহল্মত খাতা धु শাদা ^ = সর হতনা से एश लाइन राम भट्ट सामझ मात्स লিল লহ হী এ




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