अयोध्या काण्ड | Ayodhya Kand

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Ayodhya Kand by कमलेश - Kamalesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| १३ 1 नाभादासजी ने तो अपन भमक्तमाल में इनके भारी प्रशंसा की है। फलि कुटिल जीव निस्तार हित बाल्मीकि घुलसी भयो! कह कर उन्होंने उनकों साज्षाव्‌ बराल्मीकि दी পাশা हैं | इसके अतिरिक्त चनन्‍्दुदास का उनको भाई माना जाना है | सूरदास से उनकी भेंट होना भी बताया जाता हैं। कवि केशव ओर तुलसी के समागम की चात भी प्रसिद्ध है, जिसमें को३ केशव जीनितावस्था में ओर को प्रेत्ावस्था में मिलन वताते हे 1 | ह - चमत्कार भोस्वासी के जीवच में भी अन्य महात्माओं की भाँति चमत्कारों का समावश हो गया हैं। শপ से कुछ नीच दिए जाते हैं-- ' (१) हुद्‌ को जिलाना.. एक समय एक माह भर गया था | उसको स्त्री सती होन जा रदी थी। गोस्वोभीजी ने उस सी के श्राम्‌ करने पर -उसे सौंभाभ्यकती' होने का आशीषाद दिया । लोगों ने कहा भद्दराज इसका तो আঁ 4২ गया हैं, यह सती होने जा रही हैं (९ अ पका आम्‌ नाद ट नदीष्टो सकता | (गोस्वामी ने कहा कि जन तक में गया स्तान करफे न ॐ, ) छल सुप्‌ की जसान। भत) 1 सरा स्तन कर्वे पीन घटे तक भभवत्युति करते रह और मुदा जी उठा। (२) कुष्णु-मूरति के राम-पूर्ति हो जाना दल्ली से भोस्वासीजी ध्न्दावन गए | एक मन्दिर में ऋप्ण सूतति के दशच करके उन्मि का . পণ অপর জনি नानी, मते भने दौ नाथ । छुससी अस्तक तत नवे, নতুন বাশ लंड हाथ ॥




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