ग्रहण लगा तथा अन्य राष्ट्रीय कविताएं | Grahan Laga Tatha Anya Rashtriy Kavitayen

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Grahan Laga Tatha Anya Rashtriy Kavitayen  by कमलेश - Kamalesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पा | प, षी माँ, छेड़ो श्रपनी वीणा फिर एक बार गूँज उठे जल-थल-ध्रम्बर अपार लेकिन, यह राग हो अपने आप में तूफ़ान, ताज्जुब से देखे दुनिया-जहान, शत्रु की हिम्मत हो पस्त, वहु लगे जैसे कोई तारा श्रस्त। ग्रौर, जीवन हो निवरा, सिम ढला सोना जैसे श्रभी-श्रभीहो च से तपकर निकला यह चीन, यह चाऊ-एन-लाई, जिनको हमने कभी समा था भाई जिन पर विश्वास केर ` हमने गंवा दी जिन्दगी की सारी कमाई, म्रा जाय होश मे, समभ क्या सुखा, क्या नमी, दोस्ती को समभ दोस्ती, ` ग्राद्मी को जाने आदमी। श्रालिर वि




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