शरत - साहित्य | Sharat - Sahity
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बास्दनकी बेटी ।
कौड़ी के मरनेके साथ ही बूढ़ेने सबको निकाल बाहर किया । छोटी जातके मुँहमें
लगे आग ! उसने निकाल दिया सो क्या अब तुम लोग बाम्हनोकि मुम
आकर रहोगी १ तुम लोगोंका दिमाग तो कम नहीं ! कौन लाया. तेरी मौँको ?
रामतनुका दमाद लाया होगा १ नहीं तो और किसमें एसी विद्या है ! घर-जमाई
है, तो घर-जमाइकी तरह रहे; ससुरका घन मिल गया हं सो अब क्या मुखे,
भंगी-चमार-डोम-दूले लाकर बसायेगा १ ”
यह कहते हए रासमणिने आवाज़ दी--सन्ध्या, ओ सन्ध्या, घरमें दे री ?
पड़ती पड़ी हुई ज़ूमीनके उस तरफ रामतनु बनर्जीकी खिड़की है । बुलाइट
सुनकर पासकी खिड़की खोलकर एक उन्नीस-बीस बरसकी सुन्दर लड़कीने मुंह
निकालकर जवाब दिया, “ कौन बुला रहा दे ? अरे ये तो नानी हैं । क्यो,
क्या बात है ? ” कहती हुई वह बाहर निकल आई ।
रासमणिने कहा--तेरे बापकी अकल केसी हो गई हे, बेटी ? तेरे नाना राम-
तनु बाबू एक नामी कुलीन थे, उन्हींके मकानमें आज बसने लगे बाग्दी दूले !
केसी घिरनाकी बात है बेटी !
इतना कहकर गालपर हाथ रखकर फिर कहने लगी-अपनी माको तो जर
बुला दे । जग्गो इसका क्या इन्तजाम करती है, करे; नदीं तो, चटर्जी भडयाके
पास जाकर मे खुद कह आग । वे ठहरे जमीनदार, एक नामी-गरामी बडे
आदमी । वे क्या कहते हैं, सो भी सुन दूँ ।
संध्याने बहुत दी आश्वयंके साथ पूछा--क्या हुआ है नानीजी ए
बुला न अपनी माको ! उसे कहे जाती हूँ क्या हुआ है । ””
इतना कहकर अपनी नातिनीकी तरफ इशारा करके कहा--यह लडकी
मंगलवारके दिन बकरीकी रस्सी लॉँघ गई, और उस दूलेकी छुकड़ियाने इसको
अपना आँचल छुआ दिया--
संध्याने उस लड़कीसे पूछा--वूने छू दिया है ?
वह बेचारी अत्र तक उस बच्चेको छातीसे लगाये एक तरफ खड़ी थी, रोने
गलेसे अस्वीकार करती हुई बोली--नहद्दीं, जीजी--
रासमणिकी नातिनी भी करीब करीब साथ ही साथ बोल उठी--नह्दीं,
संध्या जीजी, उसने मुझे नददीं छुआ, वो तो वहाँसे--
मगर उसकी बात दादीके ष्टु कारे मारे जर्होकी त्यः दूचकर रह गई ।
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