शरत - साहित्य | Sharat - Sahity

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Sharat - Sahity by धन्यकुमार जैन - Dhanyakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बास्दनकी बेटी । कौड़ी के मरनेके साथ ही बूढ़ेने सबको निकाल बाहर किया । छोटी जातके मुँहमें लगे आग ! उसने निकाल दिया सो क्या अब तुम लोग बाम्हनोकि मुम आकर रहोगी १ तुम लोगोंका दिमाग तो कम नहीं ! कौन लाया. तेरी मौँको ? रामतनुका दमाद लाया होगा १ नहीं तो और किसमें एसी विद्या है ! घर-जमाई है, तो घर-जमाइकी तरह रहे; ससुरका घन मिल गया हं सो अब क्या मुखे, भंगी-चमार-डोम-दूले लाकर बसायेगा १ ” यह कहते हए रासमणिने आवाज़ दी--सन्ध्या, ओ सन्ध्या, घरमें दे री ? पड़ती पड़ी हुई ज़ूमीनके उस तरफ रामतनु बनर्जीकी खिड़की है । बुलाइट सुनकर पासकी खिड़की खोलकर एक उन्नीस-बीस बरसकी सुन्दर लड़कीने मुंह निकालकर जवाब दिया, “ कौन बुला रहा दे ? अरे ये तो नानी हैं । क्यो, क्या बात है ? ” कहती हुई वह बाहर निकल आई । रासमणिने कहा--तेरे बापकी अकल केसी हो गई हे, बेटी ? तेरे नाना राम- तनु बाबू एक नामी कुलीन थे, उन्हींके मकानमें आज बसने लगे बाग्दी दूले ! केसी घिरनाकी बात है बेटी ! इतना कहकर गालपर हाथ रखकर फिर कहने लगी-अपनी माको तो जर बुला दे । जग्गो इसका क्या इन्तजाम करती है, करे; नदीं तो, चटर्जी भडयाके पास जाकर मे खुद कह आग । वे ठहरे जमीनदार, एक नामी-गरामी बडे आदमी । वे क्या कहते हैं, सो भी सुन दूँ । संध्याने बहुत दी आश्वयंके साथ पूछा--क्या हुआ है नानीजी ए बुला न अपनी माको ! उसे कहे जाती हूँ क्या हुआ है । ”” इतना कहकर अपनी नातिनीकी तरफ इशारा करके कहा--यह लडकी मंगलवारके दिन बकरीकी रस्सी लॉँघ गई, और उस दूलेकी छुकड़ियाने इसको अपना आँचल छुआ दिया-- संध्याने उस लड़कीसे पूछा--वूने छू दिया है ? वह बेचारी अत्र तक उस बच्चेको छातीसे लगाये एक तरफ खड़ी थी, रोने गलेसे अस्वीकार करती हुई बोली--नहद्दीं, जीजी-- रासमणिकी नातिनी भी करीब करीब साथ ही साथ बोल उठी--नह्दीं, संध्या जीजी, उसने मुझे नददीं छुआ, वो तो वहाँसे-- मगर उसकी बात दादीके ष्टु कारे मारे जर्होकी त्यः दूचकर रह गई ।




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