वक्त्रत्व कला के बीज भाग-1 | Vaktrtav Kala Ke Bij Bhag-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) १५ अविनीत क्षिष्य, १६९ शिष्यो पर अनुशासन करते समय, १७ गुरु- रिक्षा के समय विनीत अविनीत शिष्यो का चिन्तन, १८ गुरु की आवश्यकता, १६ धर्म॑, २० धर्म के लक्षण, २१ जैनधर्म एवे उसका महत्त्व, २२ धर्म की महिमा, २३ धर्म की प्रेरणा, २४ धर्म की आवश्यकता, २४५ धर्म के फल, २६ धर्म के भेद, २७ धन से धर्म नही, २८ दुष्प्राप्य घर्म, २६ धर्मप्राप्ति के उपाय, 3० धर्म समझने के बाद, ३१ धर्म की उत्पत्ति, ३२ धर्म के विविध प्रसग, ३२३ सच्चा धर्माचरण, ३४ धर्मोपदेश किसके लिए, 3५ धर्मोपदेश के अधिकारी, ३६ विधि- अविधि से किया. हुआ घर्म, ३७ स्वधर्म-परधर्म, ३८ धर्मज्ञ, ३९ धर्मी, ४० टदर्धमियो के उदाहरण, ४९१ धम के ठेकेदार । तीसरा कोष्ठक पृष्ठ १५८ से २३९६ १ अधर्म, २ पाप, ३ पापको छिपाभो मत, ४ महापाप, ५ पापी, ६ पाप निवृत्ति का उपदेश, ७ पाप का पश्चात्ताप, ८ पाप के प्रकार, € पाप-बध, १० अहिसा, ११ महसा की महिमा, १२ अहिसा के फल १३ अहिसा का उपदेश, १४ दया, १५ दया की महिमा, १६ दयालु, १७ हिमा, १८ हिसा के प्रकार, १९ हिंसा मे धर्म नहीं, २० शिकार २१ सत्य (सत्य का स्वरूप), २२ सत्य के प्रकार, २३ सत्य की महिमा, २४ सत्य का उपदेश, २४ सत्य के पालप में कठिनाई, २६ सत्य के विपयमे विविध, २७ सत्यवचन, २८ सत्य वचन की प्रेरणा, २६ सावद्य सत्य का निषेध, ३० सच्चे व्यक्ति, ३१ सच्चे व्यक्ति का चिन्तन, ३२ सत्यवादी, ३३ सच्चो का सम्मान, ३४ सत्य के विषय मे कहावतें, ३५ सच्चाई के उदाहरण, ३६ ईमानदार, ३७ वेद्मानी के चित्र) ष्योया कोष्ठ पृष्ठ २३७ से २७२ १ असत्य, (असत्य का स्वरूप} २ असत्य के भेद ओौर फल, ३ असत्य कौ निदा, ४ असत्यवचन, ५ असत्यवादी, ६ अस्तस्य के विषयं




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