आहार ही औषध है 1942 | Ahar Hi Aushadh Hai 1942

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की ओइमू कफ भोजनमेव मेषजम्‌ । आहार ही ऑओप आहार ही ऑपध हे न जूक [ चिषय-प्रवेश जीना सीखो, सुजीवन झापकी रक्षा स्वयं कर लैगा इस बात का निषेध कोई भी न करेगा कि मनुष्य का संघटन ( बनावट ) उसके भोजन ( आहार ) पर निभेग है । “चस्तुत: मनुष्य अपनी भोजन की थाली पर ही बनता वा बिगड़ता है,” यह बात विश्वास का कथन मात्र ही नहीं है, किन्तु का्यरूपेण यथाथ हैं । यदि मनुष्य के प्राय: प्रयेक रोग के मूल कारण का पता लगाया जाय तो वह उसका ्रमभरित ( मूखता पूर्ण ) कुत्सित भोजन ही निकलेगा और यदि सत्य का अथ निश्चित ज्ञान वा तथ्याथ है, तो में अपने पाठकों को निश्चय दिलाता हू कि केवल समुचित अ्राहार से ही सारे रोग च्छे हो सकते हैं । मनुष्य का शरीरयन्त्र स्वयमेव एक चमत्कार हे । वह स्वयमेव सुव्यवस्थित हो जाने वाला ( छा पेतुप5निए0छ ) स्वयसेव नियम- बद्धता को प्राप्त होने वाला ( 561 7०9० ) स्वयमेव सुघर जाने वाला ( 36 #₹७,क्षंता 0 ) तथा स्वयमेव विकसित होने चाला ( 36७1 व०र७1०फ०8४ ) यन्त्र है । ला जि ज् मु ह अन्कर, सह 1 नजर मै 3 पद न 7 ः दर डर कन ह द् | प्य्ध फिट भि पद, पर न रिीण रे थ ही यू नै चखिय । तो पं दिन, ं ही कै .. अर * बा नि की अ' 'र्ज़्ई डँ. . कं कु हि कद थ




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