नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagariparcharini Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतंदु फा संचित जीवनडृत्त एवं साहित्य ५
देखकर भारतेंदु जी ने उसे अप्रामाणिक सिद्ध किया श्रौर त में बर्ह से उस मृति
को हटवाकर ह छोड़ा । इसपर किसी ने 'तहक़ीक्नात पुरी” लिखा, जिसके उत्तर में
इन्होंने 'तहक्कीक़ात पुरी की तहक़ीक़ात' लिख डाला ।
भारतेंदु जी कद के कुछ लंबे तथा शरीर के एकहरे थे, न श्रधिक कृश ओर
न मोटे । झाँखें बहुत बड़ी न थी और कुछ धंसी हूर सी र्थी । नाक बहुत सुड।ल
थी । घु घराली लट कानों पर लटकती र्ती थीं । ड चा ललाट भाग्य का श्य,तक
था । इनका रंग साँवलापन लिप था श्रौर शरीर की कुल बनावट सुडौल थी । इनके
शारीरिक तथा मानसिक सोदयं का इनसे मिलनेवालो पर अच्छा प्रभाव पडता
था। उस समय लोग इन्हें कलियुग क कंधैया' का करते थे । साहित्याचायं
प० अंबिकादत्त व्यास ने 'विहारी-विह्दार' में लिखा है कि धूर से लोग इनकी मधुर
कविता सुन आछष्ट होते थे और समीप आा मधुर श्यामसुंदर घु घराले बालवाली
मधुर मूति देखकर बलिहारी होते थे श्रौर वार्तालाप में इनके मघुर भाषण, नम्रता
और शिष्ट व्यवहार से वशंबद हो जाते थे ।'
भारनेंदु जी के शील, सौजन्य तथा उदारता की अनेक कथाएं हैं, पर इन्हें
इसका कभी घमंड नहीं हुआ । ये स्वभावत: कोमलहृदय तथा पर-दुःख-कातर थे ।
कहीं भी बाढ़ या झकाल से लोगों को कष्ट हुआ कि इन्होंने स्वयं यथाशक्ति सहायता
की तथा घूम-घूमकर चंदा एकत्र कर भेजवाया। रास्ते चलते किसी को जा में
ठिदरते हुए देखा तो 'अझपना दुशाला ही ओढ़ा दिया । इन्होंने अपने वित्त से बहकर
गुणियों, कलाबिदों, विद्वानों तथा सुकबियों का श्रादर-सत्कार किया । दीन-दुखियो
के दुःख दूर किए और कितने ही लोगों की सहायता कर उन्हें व्यवसाय में लगा
दिया । यह सब करते हुए भी इन्हें कभी अपनी दातव्यता, झमीरी, कवित्व-
शक्ति आदि पर हकार नहीं हृश्रा। ये स्वभावत: नम्र प्रकृति के थे, पर
दूसरे के अभिमान दिखलाने पर ये उसे सहन नहीं कर सकते थे । इनके एक
कवित्त से इनके स्वभाव, भक्ति आदि पर बहुत अच्छा प्रकाश पढ़ता है |
कहते है
सेवक गुनीजन के चाकर चतुर के हैं
कविन के मीत चित हित गुन गानी के ।
सीषेन सो सीषे महा बांके हम बकेन सां
(हरचंद नगद दमाद श्रमिमानी के ॥
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