प्रगतिवाद की रूपरेखा | Pragativad Ki Roop Rekha

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Pragativad Ki Roop Rekha by मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ प्रतिवाद की रूपरेखा ह । यद्यपि प्रगत्तिशीलता प्रगति, की उत्तरोत्तर व्यापके परिभाषा को श्र॑पनाती है, पर प्रमतिशीलता किसी भी हालत मे सत्‌ प्रौर प्रस्‌ ˆ सब रोक-ध्रामों से मुक्ति नहीं दिला देती । जो नए समाज का द्योतक है, उसको लाने में महायक होता है, वह सत्‌ है; जो नए समाज को रोकता हू, उसके प्रागमनके मार्ग में रोड श्रटकाता हु, वही भ्रसत्‌ है । यहभीहोसकताहै किएक विचार एक समय में कतिकारी .हो, बाद मे वही प्रतिक्रिया का रूप ग्रहण कर ले । जब तक एक देश पराधीन होता है, तो वहाँ राष्ट्रीयता प्रगतिमूलक होती हैं । इसलिए राष्ट्रीयतामूलक सारा साहित्य जिसमे विदेशो साम्राज्यवाद के साथ संग्राम अ्रंतनिहित है, प्रगतिमूलक होता हं । पर जब एक स्वतन्त्र देश में राष्ट्रीयता के तथा राष्ट्रीय उद्योगधंबों की वृद्धि के नाम पर मेहनतकश वर्ग को दबाया जाता है,. तो राष्ट्रीयत। प्रतिक्रियावादी हौ जाती हे, भ्रौर उसकी दृहाई देने. व।ला सारा साहित्य प्रतिक्रियावादी हो जाता ह । इसी प्रकार श्रन्थ प्रनेक उदाहरण दिए जा सकते हूँ । ्ाशावाद का प्रचारक हमारे नए स्वतन्त्र देश में इस बात की श्रावश्यकता है कि. साहित्य लोगों म ग्राशा उत्पन्न कर के नए संग्रामों के लिए हमको तैयार करे। श्रौर किसी देश में कुछ भी हो, हमारे यहाँ साहित्य: को साहित्य रहते हुए मुस्तेदी के साथ समाज- रचना में भाग लेना. पड़ेगा । प्रगतिशील मतवाद का केवल इतना ही कहना है.। हम ग्रइलीलता, पलायनवाद, रहस्यवाद, छायावाद में पड़कर श्रपनी करमें- ञाक्ति को विघटित नहीं होने दे सकते 1




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