क्वाथ मणिमाला (1949) | Kwatha Manimala (1949)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
103
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)£ क्राथमणिमाल्लाया--
काथ गरमिणी के सभी अतिसारों में, रक्तस्राव में, ज्वर में तथा सूतिका रोग में
अति श्रेष्ठ है ऐसा मुनियों ने बताया है ॥ १९ ॥
गर्भयू छादिषपु काथा।!-
दशमूलोद्धवं काथं घुनसेन्धवसंयुतम् ।
श्रलात्ती या पिचन्नारो सा सुखेन प्रसूयते ॥ २० ॥
दकमूल ( षर की गुही, खोनापाा, गम्मारी की छार, पाटला, अरनी =
शषरिवन, पिषिवन्, भटकटेया, वनमेटा, गोखरू --) का काथ धृत जर सेधा मक
मिलाकर पीने से शुरुसे दुःखी रत्री सुखपूर्वक प्रसव करती हे ॥ २० ॥
मातुटङ्गाऽश्ममिदिस्ववलामधुकसम्भवः ।
काथः सन्धवसंयुत्तों गभश्चल् प्रशाम्यति ॥ २९ ॥
नीम्बू का मू, पापाणमेद, वेर की गृदूदी, वरियरा ओर सुलहटी का क्राथ
सेधा नमक मिलाकर पीने से गर्भशूरू नष्ट होता है ॥ २१ ॥
बलागोकुरयोः क्वाथो मूत्रचन्यमपोह्दति ।
ततः प्रक्वसोकय्यं युज्यते.ऽयं भिषग्वरः ॥ २२॥
बरियिरां तथा गोखरू का क्राथ मूत्रकृच्छू को दूर करता है इस लिए सुख
पूर्वक प्रसव के छिए भी वेद्ागण इसका प्रयोग करते हैं ॥ २२ ॥
पशाचेक्ुधनीश्रिल्वकुरष्थैः साधितं जलम् ।
मूत्राबाधं निहत्यैव गभ तुर नियच्छति ॥ २३ ॥
उख, धनि, बेल की गुदी जौर इरुथी से पकाया हुआ जर मृत्ररोध को
दूर कर गर्भ को भी सुख पूर्वक निकाल्ता है ॥ २३ ॥
सन्नोर पुष्पबिट्वाब्दोदी च्यो दुस्बर चन्दन: ।
निय्युद्दो घूतसयुक्तो ग्भस्त्रावं निददन्ति वे ॥ २४ ॥
पीठे पुष्प के नारियल का मूठ, बेखछ, नागर मोथा; छड़िछा, यूकर की छाठ
ओर छाछचन्दन का क्ाथ घृत मिलाकर पीने से गर्भस्राव सक जाता है ॥ २४ ॥
२३--पेशाचेलुः-रम्मेछ्ुः-लक्कायां रंबुक, ( पे 00: ) इति श्रतिद्ध: ।
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