क्वाथ मणिमाला (1949) | Kwatha Manimala (1949)

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Book Image : क्वाथ मणिमाला (1949) - Kwatha Manimala (1949)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ क्राथमणिमाल्लाया-- काथ गरमिणी के सभी अतिसारों में, रक्तस्राव में, ज्वर में तथा सूतिका रोग में अति श्रेष्ठ है ऐसा मुनियों ने बताया है ॥ १९ ॥ गर्भयू छादिषपु काथा।!- दशमूलोद्धवं काथं घुनसेन्धवसंयुतम्‌ । श्रलात्ती या पिचन्नारो सा सुखेन प्रसूयते ॥ २० ॥ दकमूल ( षर की गुही, खोनापाा, गम्मारी की छार, पाटला, अरनी = शषरिवन, पिषिवन्‌, भटकटेया, वनमेटा, गोखरू --) का काथ धृत जर सेधा मक मिलाकर पीने से शुरुसे दुःखी रत्री सुखपूर्वक प्रसव करती हे ॥ २० ॥ मातुटङ्गाऽश्ममिदिस्ववलामधुकसम्भवः । काथः सन्धवसंयुत्तों गभश्चल् प्रशाम्यति ॥ २९ ॥ नीम्बू का मू, पापाणमेद, वेर की गृदूदी, वरियरा ओर सुलहटी का क्राथ सेधा नमक मिलाकर पीने से गर्भशूरू नष्ट होता है ॥ २१ ॥ बलागोकुरयोः क्वाथो मूत्रचन्यमपोह्दति । ततः प्रक्वसोकय्यं युज्यते.ऽयं भिषग्वरः ॥ २२॥ बरियिरां तथा गोखरू का क्राथ मूत्रकृच्छू को दूर करता है इस लिए सुख पूर्वक प्रसव के छिए भी वेद्ागण इसका प्रयोग करते हैं ॥ २२ ॥ पशाचेक्ुधनीश्रिल्वकुरष्थैः साधितं जलम्‌ । मूत्राबाधं निहत्यैव गभ तुर नियच्छति ॥ २३ ॥ उख, धनि, बेल की गुदी जौर इरुथी से पकाया हुआ जर मृत्ररोध को दूर कर गर्भ को भी सुख पूर्वक निकाल्ता है ॥ २३ ॥ सन्नोर पुष्पबिट्वाब्दोदी च्यो दुस्बर चन्दन: । निय्युद्दो घूतसयुक्तो ग्भस्त्रावं निददन्ति वे ॥ २४ ॥ पीठे पुष्प के नारियल का मूठ, बेखछ, नागर मोथा; छड़िछा, यूकर की छाठ ओर छाछचन्दन का क्ाथ घृत मिलाकर पीने से गर्भस्राव सक जाता है ॥ २४ ॥ २३--पेशाचेलुः-रम्मेछ्ुः-लक्कायां रंबुक, ( पे 00: ) इति श्रतिद्ध: ।




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