कहानी - कुञ्ज संशोधित संस्करण | Kahani - Kunj Sanshodhit Sanskaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kahani - Kunj Sanshodhit Sanskaran by भगवती प्रसाद बाजपेयी - Bhagwati Prasad Bajpeyi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भगवती प्रसाद बाजपेयी - Bhagwati Prasad Bajpeyi

Add Infomation AboutBhagwati Prasad Bajpeyi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[1 © क्य ` अभिप्राय मनुष्यके उस वाहरी र्पसे टै, जो छिपा नहीं रहता, प्रकट-ताकार गीर प्रत्यक्ष होता कमं से वह्‌ प्रकट होता है, सक्रियता से उसका आकार वनता है गीर संसार को वचन गौर कमं ते उसका अनुयव करने का गवसर मिलता है; किन्तु जीवन का सत्य केवल वचन गौर कम की सीमाओों में घिरकर--कैद होकर नहीं रहता । बहुत कुछ तो वह सन के अन्दर ही बना रहता है । यहाँ तक कि कभी-कभी ऐसे अवसर भी यति है, जब जीवन का सत्य मनुष्य की झृत्यु में प्रकट होता है । महामना प्रेमचन्दजी के कथन का ऊपर जो उद्धरण दिया गया है, उस में कथा के मनोवैज्ञानिक सत्य के केवल एक रूप की भालक सिलती है | जिस प्रकार प्रत्येक बुरे आदमी के अन्दर एक भलाई का दान उन्होंने किया उसी प्रकार प्रकट रूप से भले आदमी का आकारनप्रकार वे भव और कीर्ति रखने वाले व्यक्तियों के अन्दर कुछ ऐसी दुद्दत्तियाँ भी छिपों रहती हैं, जो साधारण रूप से प्रकठ़ नहीं होती भौर नहूधा प्रकाश में नहीं गातीं । एक मूँदा ढका हुआ, ऊपर से अभिराम रूप ही लिस का प्रकट होता है; पर कितना लाइम्चर उनमें रहता है, कितनी बनावट के भीतर से वे कॉकते हैं; कितने भावरणों के द्वारा वे प्रकादा थे था पाते हैं, इन सव अध्रकट किव छिपी हुई स्थितियों को साधारण रूप से प्रायः कम लोग ही जान पाते है । सनोवज्ञानिक सत्य मनुष्य के इस वास्तविक रूप पर प्रकादा फेंकने का एक सुख्य साधन है; यथा-- जलेवियाँ लेकर एक लड़का सड़क पर जा रहा था । बह साइविल के घवके से अचानक गिर पड़ा । साइकिल वाला इसकी परवा न दारके जब मागे बढ़ गया, तब चौराहे के सिपाही ने उसे रोक लिया । दोप जिसका कि हैं, इससे वह अवगत था; वयोकि संयोग से उसकी दृष्टि उसी ओर थी | लड़के के पास लोग इक टुठें हो गये; क्योकि उसके हाथ में चाट था गयी. इस कारण वह रोने लगा । उस के रुदन ने सड़क के निवासियों वी सहा- नुभति जगा दी 1 चाराह का सिपाही जव सादकिल कासे को उस लड़के के पास ले माया, तब साइकिल वाले का ध्यान उसकी थर वाषष्ट दि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now