चकल्लस | chakallas
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.74 MB
कुल पष्ठ :
133
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)की प्ोस्टिय बढ़ जाएगी । मगर पहले इस बात की जांच कर सेनी चाहिए कि मगवान बुद्ध अपनी सूतियों जैसे सुन्दर हैं या नहीं । क्योंकि अगर उनकी पर्सनालिटी वीक हुई तो बुद्ध जयंती का सारा शी बिगड़ जाएगा । लोगों पर बड़ा खराब इम्प्रेशन पड़ेगा । ठीक है। मगर यह भी जांच लेना चाहिए कि उनके विचार अब भी वैसे ही हैं और वे हमारी श्रेजेन्ट नेहानल और इन्टरनेदानल पालिसी से मेल खाते हैं यानही? प्मगर पहले उनका स्वागत । केसे हो सकता है स्वागत ? वह हमारे प्लान में नही । और बुद्ध जी को इस तरह लिखा-पढ़ी किए यपेर प्रकट नहीं होना था । लाल फीते पर दौड़ने वाले पुरजे हर कदम पर बैघानिक गांडों से अटकने लगे । उधर भगवान निरंतर उमड़ते अथाह जन समुद्र के हड़कम्पी जोद से घिरते ही जा रहे थे । बड़-बड़े घनी-धघोरियों की डीलक्स लिमोसीन कारें हानें बजाते और होडा-हाड़ी करते हुए भगवान की सेवा में पहुंचने के लिए भक्तों की भीड़ चीरे डाल रही थीं । हर लद्ष्मी-पुत्र चाहता था कि सबसे आगे पहुंचकर वही भगवान को अपना मेहमान बना ले । और इन्ही लक्ष्मी-पुत्रों की भीड मे लखपति करोडपतियों को ढकेलते प्राइम मिनिस्टर को फोन कर लौटे हुए व्लियनगरी साहब सोहनलाल भी ठीक उसी प्रकार आगे बढ़े जा रहे थे जिस प्रकार ढाई हज़ार और कुछ बरस पहले वेदाली के राजपथ पर लिल्छवि कुमारों के रथों से टकराते हुए अम्बपाली का रथ आगे बढ़ा था । सेठों ने घक्के खाकर क्रोध और उपेक्षा से सोहनलाल साहब की तरफ देखकर कहा-- ए बाबू अपनी हैसियत देखकर होड़ लो । परे हटो । भगवान के भरोसे विनयनगरी स्गहब भी आज अकड़ गए बोले-- सोदा- लिंज्म आ गया है जानते हो । भगवान अब तुम्हारी मोनोपली नही रही । यू डर्टी कपिटैलिस्ट । पीडित प्राणी को सान्त्वन। देने के लिए भगवान विनयनगर पधारे । भगवान की कृपा से विनयनगरे इस समय दान नगर बन गया । इतनी देर में वैधानिक आलस्य और प्रतिबन्धों की फांस काटकर राष्ट्रपति एवं प्रधान मंत्री स्वयं भगवान की सेवा में उपस्थित हुए एवं राष्ट्रपति भवन के मुगलाराम में विहार करने की प्राथ॑ना की । सोहनलाल साहब की ओर एक दृष्टि डालकर भगवान बोले-- आवृस्स एक दिन इसके यहां ही विहार करूंगा । राष्ट्रपति भवन में जनता न पहुंच सकेगी । भक्तों को भगवान से अलग रखने का विधान आपके देवा में अब तक लागू 14 अकल्लस
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