शरत - साहित्य शेष प्रश्न | Sharat - Sahitya Shesh Prashn

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Sharat - Sahitya Shesh Prashn by धन्यकुमार जैन - Dhanyakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दोष प्रश्न १९१ हरेन्रने कहा, ¢ इट इज दरू मच । ” ( बहुत ज्यादती है । ) अक्षयन जोरके साथ प्रतिवाद किया, “ननो, इट इज नट {° (नर्ही, नहीं है |) अविनाश बोल उठे; ” ओ हो--कर क्या रहे हो तुम लेग! अधयन किसी बातपर ध्यान ही नहीं दिया, बोले, “' आगंरेसे वे भी किसी दिन प्रोफेसर थे । उनके आझु बाबूको बतलाना चाहिए था कि केसे वह नौकरी छूटी । ” हरेन्द्रने कहा, “ अपनी इच्छासे छोड दी । पत्थरका कारबार करनेके लिए. । ” अक्षयने खण्डन किया; “ झूठी बात है | ” शिवनाथ चुपचाप भोजन कर रहा था, मानो इस सब वितण्डा-वादसे उसका कोई सम्बन्ध ही न हो । अब उसने मुँह उठाकर देखा और अत्यन्त स्वाभाविक भावते कहा, “' बात तो झूठी ही है । कारण, प्रोफेसरी अपनी इच्छासे नहीं छोडतों तो दूसरोकी यानी आप लेरगोकी इच्छसे छोडनी पडती । ओर सो ही हुञा । ” आगु बाबूने आश्चर्ये साथ पूछा, ५८ क्यो १” रिवनायने कहा, ^ शराव पीनेकी वजहसे ] ° अक्षयने इस बातका प्रतिवाद किया; “ नहीं, शराब पीनेके कुसरपर नहीं, मतवाले दोनेके कुसूरसे । ” शिवनाथने कहा, “ जो दाराब पीता है वहीं तो कभी न कभी मतवाला होता है । जो नहीं होता, वह या तो झूठ बोलता है, या शराबके बदले पानी पीता है | ” कहकर वह हंसने ख्गा | अक्षय मरे क्रोधके कठोर हो उठा, बोख, “ निरलंजकी तरह आप हँसना चह तो दस सकते है, मगर इस कुसूरको हम लोग माफ नरह कर सकते ¦ ”” रिवनाथने कहा, ^“ ऐसी बदनामी तो में आपकी करता नहीं कि आप माफ कर सकते हैं । इस सत्यकों मैं स्वीकार करता हूँ कि स्वेच्छासे मुझसे नौकरी छुडानेके लिए. आप लोगोंने स्वेच्छासे काफी परिश्रम किया था । ”” अक्षयने कहा, “ तो आशा है कि और भी एक सत्य आप इसी तरह स्वीकार कर छेगे । आपको शायद साठूम नहीं कि हम लोग आपकी बहुत-सी बातें जानते हैं । ”” दिवनाथने गरदन हिलाकर कहा, “ नदी, सुझे नहीं सालम । फिर भी इतना अवश्य जानता हूँ कि औरोके विषयमें आपका कुतूहल जैसा अपरिसीम




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