भावना - शतक | Bhavana - Shatak

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Bhavana - Shatak by मुनि श्री रत्नचन्द्रजी महाराज - Muni Shree Ratnachandraji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भावता-शतक 1 सप्रान ) यह विशेष वीतराग श्रवस्या के कालप ज्ञान-सम्पप्ति को रदित करता है । देवों को श्रलन्त प्रिय श्रौर 'इख्-द्वारा पूजित' यह दोनो विशोषण वीतराग श्रवस्या की सहज विभूति या पुजातिशय को प्रकट करते हैं। नमस्करणीय वीर प्रमु की वीतराय श्रवस्था श्र उस श्वस्था की संपत्ति को यहाँ स्मरण करने का कारण यह है कि न इस संसार में यदि कोई शान्ति का स्थान हो सकता है, तो वह वीतराग झ्वस्था ही है । कहा भी है-- न वि छुद्दी देवता देवलोए, न वि सुद्दी पुदवीवई राया। न वि खुदी सेदि सेणावर य, एगंत सुद्यी भणी वीयरागी ॥ जो अवस्था परम शान्ति को देनेवाली दै, वही श्रवस्था शान्ति के श्रमिलाषी पुरुषों के लिए साध्य शऔर वाञ्छनीय दै) अन्धकार भी ममस्फार करते हुए उक्त विशेषणों द्वारा प्रार्थना के रूप में श्रपनी यही भीतरी इच्छा प्रकट करते हैं कि जिस भावना के बल से वरद्धमान मरवान्‌ ने वीतराग श्ररस्था की, शान आदि विसूति प्राप्त की है, उसी भावना का उच्च बल सु में भी प्रकट हो | पूर्वाद में इध्देव को नम- स्कार करने के पश्चात्‌ उत्तराद्ध में एक शासन-प्रभावक उपकारी मद्दा- पुरुष का रमरण किया गया है| वे महापुरुष अथकार के गुरुकेभी गुरु, लींबड़ी सम्प्रदाय को नया जीवन देनेवाले श्रौर श्पने समय में शान का प्रकाश फैलानेवाले पूज्य श्री श्रजरामर स्वामी हैं । नमस्कार श्रीर स्मरण की किया के श्रनन्तर, ग्रन्थ का विपय क्‍या है, श्र ग्रन्थ की रचना का प्रयोजन क्या है, इन बातों को बताने की 1 ड




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