प्रजातन्त्र की और | Prjaatantra Ki Our
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजा कौन ? भ्
लेकिन उसे वह रोक नहीं सकती |
फिर इस राजकीय शक्ति की व्यापकत्ता मानने का एक श्र रास्ता
निकल सकता है | यदि राजा की कोई श्रप्रत्यक्ष शक्ति मान ली जाय तो कोई
कठिनाई नहीं रद्द जाती | देखने के लिए तो एक व्यक्ति अधिकार-शूत्य करके
बैठा दिया गया है, लेकिन वास्तविक शक्ति किसी न किसी श्रप्रत्यच्त व्यक्ति में
ज़रूर है । परन्तु यदि यद्द शक्ति कोई व्यक्ति है तो वह अप्रत्यक्ष नहीं हो सकता |
यद साना जा सकता है कि पहले की बनी-वनायी शक्ति को लोग पते श्राप
मानते चले जा रहे हैं और किसी को ध्यान नहीं रहा कि अब उस शक्ति का
संचालक कौन है | पहले तो जनता को इतना कूप मंडुक नहीं कहा जा
सकता, फिर बलवान से वलवान शासक कोई ऐसी व्यवस्था नहीं वना सकता
जो सदैव के लिए अमर हो| यदि ऐसा होता तो श्रशोक, दष, त्रकवर,
उ्औरंगजेव, शिवाजी आदि सम्राटों की सत्ता झाज भारतवर्ष से नष्ट नहीं हुई
होती । वैज्ञानिक युग में किसी अप्रत्यन्त शक्ति की कव्यना तकपूण नहीं है)
विश्वास के श्राधार पर कोई छोटा-मोटा बस कुछ दिन भले ही चला जाय,
लेकिन कोई राष्ट्रीय विघान इस पर नहीं वन सकता । इसलिए किसी प्रत्यक्ष
शक्ति मे राजा की कर्पना निरुघार है । परन्तु यह भी नहीं कद्दा जा सकता कि
राजा की शक्ति का लोप दो गया । वर्तमान राष्ट्र पहले से श्धिक सुसंगठित
श्र शक्तिशाली हैं | उनकी उन्नति की पराकाष्टा उनके व्यापार, अनुसन्धान,
श्रन्वेपण तथा अन्य कृतियों से भली भाँति प्रकट है | राज्य में कहीं न कहीं वह
शक्ति मौजूद है । राजनीतिक जगत में अन्य परिवतंनों के साथ इस पद में भी
इतना महान परिवतन हुश्रा है कि जब तक हमारा दृष्टिकोण नहीं बदलता तब
तक हम उसे देख नदीं सक्ते |
राजसन्ता की उघेड्वुन मे हम जितनी दी गहराई में प्रवेश करते हैं
उतना दी यद प्रश्न शरोर भी जटिल होता जाता है । इसका कारण यहरैकि
हम साधारण बुद्धि से गूढ सिद्धान्तो का श्रथ निकालना चाहते ई । वतमान
युग में राजा को पहचानने के लिए, दमारी बुद्धि व्यापक होनी चाहिए । जो
अधिकार किसी समय राजा को दिये गये थे और जिन कर्तव्यों की दस उससे
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