पत्र और पत्रकार | Patra Aur Patrkar

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Patra Aur Patrkar by कमलापति तिवारी शास्त्री - Kamlapati Tiwari Shastriपुरुषोत्तम दास टंडन - Purushottam Das Tandon

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पुरुषोत्तम दास टंडन - Purushottam Das Tandon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पत्र ओर पत्रकार जीवनमें पत्रका स्थान और प्रभाव मनुष्य चेतनाशीछ प्राणी है । वह अपने चारो ओरकी डुनियाको देखता है और उससे प्रभावित होता है । जो पदार्थ और वस्तुस्थिति उसे घेरे हुए रहती है उनका दर्शन उसकी अनुभ्रूतियोका कारण होता है। जब किसी पदार्थकी सत्ताका भान होता है तो उसके सम्बन्धमें और कुछ जाननेकी इच्छा पैदा 'होती है । जिज्ञासाकी यह सनोबत्ति सजुष्यके स्वभावकी विशेषता है । इस अ्रवत्तिने उसके विकास और उसकी प्रगतिके मार्गकों प्रशस्त करनेमें कदाचित्‌ सबसे अधिक हिस्सा छिया है । ज्ञान, और अधिकसे अधिक ज्ञान उसकी प्रबल पिपासा रही है जिसकी शान्ति करनेके प्रयाससें उससे कया नहीं किया ? रातमें आकाशकें चमकते हुए सितारे, चन्द्रकी चन्द्रिकाकी मनोहर शीतलताका अजुभव, भोरसे प्राचीके अन्तरिक्षसे मोहनी उपाकी ' रत्ताभा, सावनके नसमें गरजते हुए काले बादुलोकी _ घरघराहट और क्षण-प्रतिक्षण 'चमककर विलुप्त हो जानेवाली चपलाकी चब्चलतासे मनुष्य सदा अ्रभावित होता रहा है जिसके रहस्यका उद्घाटन करनेके लिए उसकी जिज्ञासाशीक चेतना विकल होकर खोजके लिए श्रवुत्त होती रही है । उसी जिज्ञासाने उसे प्रकृतिके रहस्यका उद्घाटन करनेके लिए उस्प्रेरित किया । उसीके गर्भसे बढ़े-बड़े दर्शनोकी उत्पत्ति हुई । उसीके उद्रसे आजका विज्ञान पैदा हुआ। इन सबसे मिलकर मचुष्यको जगद्‌के अन्य शप्राणियोसे कहीं अधिक ऊँचा उठा दिया है । आजके सचुपष्यका ज्ञान विशाल है, उसकी बोद्धिक सीमा दृइ्य जगत्‌को पार करके कही दूर पहुँच रही है ओर वह सारे विधि-मपन्‍्चके तस्व तकका साक्षात्कार करनेपर छुला दिखाई दे रहा है । यह सब उसकी जिश्ञासाका ही परिणाम है ।




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