प्रजातन्त्र की और | Prjaatantra Ki Our

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Prjaatantra Ki Our by पुरुषोत्तम दास टंडन - Purushottam Das Tandon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजा कौन ? भ्‌ लेकिन उसे वह रोक नहीं सकती | फिर इस राजकीय शक्ति की व्यापकत्ता मानने का एक श्र रास्ता निकल सकता है | यदि राजा की कोई श्रप्रत्यक्ष शक्ति मान ली जाय तो कोई कठिनाई नहीं रद्द जाती | देखने के लिए तो एक व्यक्ति अधिकार-शूत्य करके बैठा दिया गया है, लेकिन वास्तविक शक्ति किसी न किसी श्रप्रत्यच्त व्यक्ति में ज़रूर है । परन्तु यदि यद्द शक्ति कोई व्यक्ति है तो वह अप्रत्यक्ष नहीं हो सकता | यद साना जा सकता है कि पहले की बनी-वनायी शक्ति को लोग पते श्राप मानते चले जा रहे हैं और किसी को ध्यान नहीं रहा कि अब उस शक्ति का संचालक कौन है | पहले तो जनता को इतना कूप मंडुक नहीं कहा जा सकता, फिर बलवान से वलवान शासक कोई ऐसी व्यवस्था नहीं वना सकता जो सदैव के लिए अमर हो| यदि ऐसा होता तो श्रशोक, दष, त्रकवर, उ्औरंगजेव, शिवाजी आदि सम्राटों की सत्ता झाज भारतवर्ष से नष्ट नहीं हुई होती । वैज्ञानिक युग में किसी अप्रत्यन्त शक्ति की कव्यना तकपूण नहीं है) विश्वास के श्राधार पर कोई छोटा-मोटा बस कुछ दिन भले ही चला जाय, लेकिन कोई राष्ट्रीय विघान इस पर नहीं वन सकता । इसलिए किसी प्रत्यक्ष शक्ति मे राजा की कर्पना निरुघार है । परन्तु यह भी नहीं कद्दा जा सकता कि राजा की शक्ति का लोप दो गया । वर्तमान राष्ट्र पहले से श्धिक सुसंगठित श्र शक्तिशाली हैं | उनकी उन्नति की पराकाष्टा उनके व्यापार, अनुसन्धान, श्रन्वेपण तथा अन्य कृतियों से भली भाँति प्रकट है | राज्य में कहीं न कहीं वह शक्ति मौजूद है । राजनीतिक जगत में अन्य परिवतंनों के साथ इस पद में भी इतना महान परिवतन हुश्रा है कि जब तक हमारा दृष्टिकोण नहीं बदलता तब तक हम उसे देख नदीं सक्ते | राजसन्ता की उघेड्वुन मे हम जितनी दी गहराई में प्रवेश करते हैं उतना दी यद प्रश्न शरोर भी जटिल होता जाता है । इसका कारण यहरैकि हम साधारण बुद्धि से गूढ सिद्धान्तो का श्रथ निकालना चाहते ई । वतमान युग में राजा को पहचानने के लिए, दमारी बुद्धि व्यापक होनी चाहिए । जो अधिकार किसी समय राजा को दिये गये थे और जिन कर्तव्यों की दस उससे




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