जीवनी खंड | Jeevni Khand

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Jeevni Khand  by ज्योतिप्रसाद मिश्र - Jyotiprasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनी खंड ६ मीग प्याला पी लिया रे, बोली दोउ कर जार | ते ता मारणु की करी रे, मेरों राखणुहारों आर ॥ ४ | आधे जाहडी कीच है रे, आधे जादृड होज। आधे मीरा एकली रे, श्वि गणाकी फीज ॥ ५. !) फाम क्रोध को डाल के रे,+ सील लिये हथियार 1 नीती मीग ण्कलों 3३. हारी राणा की धार ॥ ६ ॥ काचगिरी* का चौतरा मे, थैठे साथ फ्चास | जिनमे मीरा ऐसी दमके, लख तारे मे परकास ॥ ७ ॥| [ मीरा की ठाय्दादला, वेलवेडियर प्रेस सर्करण प० ४०-४५ ३ इस पद की ध्वनि कुछ ऐसी है जो रमे मीगचिन नेम सदेह उप- स्थित करती है । विशेषकर प्रतिम दो लग्ण पाचि का चौतरा र इत्यादि हो मी की लेग्बनी से उद्भूत हो ही नहीं सकते । इसी प्रकार मीं तथा उनकी सास श्रौर ननद की चातचीन जिन पढो में दी गई हैं. उनके मीसों-रचित होने मे पूर्ण संदेह है । एक उदाहरण देखिए : [ऊढा | माभी मीरा कुल ने लगाई गाल. इंटर रद का आया जी ऑलवा । [ मीग | वा ऊदाथारै म्होर्‌ नानो नारि, सामा व्रत्या का आया जी त्रालयार ॥५॥ [_ ऊदा ] भाभी मीरः कासावःका संग निवार, सागि सद्र थो निन्दा क| [ मीय | चाड उदा करता पटना भव मारो. ग्ने लागे ग्मना गम मे ॥र्‌॥ { वा प्र ३०३] ये एवते नीटक्यो के प्थवद गर्तालाप जन जान प्टते ह! इनका मीरा द्वारा लिखा जाना फिसी प्रकार सम्भव नहीं जान पड़ता 1 के एन वहा या भाप, से फोर सव 4 द दन ग सादर उण उससे उन लव दिला 3




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