सतसई - सप्तक | Satasai - Saptak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) के साथ नए रूप में देखी जाती है। - इस प्रभाव को लाने ठे लिख? सूक्तिकार के पास कई साधने का दाना श्रावश्यक है । सवे प्ले उसके कथप में कुछ वक्ता या बॉकापन दाना चाहिए । उसे घुमाव-फिराव से बात कनी चाहिए : बिल्कुल सीधे ढंग से कहने से वात का मद बहुत छह घट जता है । सिंदट्वार या सदर फाटक से श्राक्रमश करनेवाले को इद्‌ भ्रवरोध का सामना करना पढ़ता है । इसी लिये किले मे प्रवेश करने के लिये आक्रमण- कारी ऐसें किसी किनारे के छोटे-माठे दरवाजे की टोहे में रहते हैं जिसका कोट के निदासियों के उतना खयाल न दो । दिल में प्रवेश करने के लिये भी बात को ऐसे ही साग ढूँढ़ने चाहिएँ । विदग्ध बाणी फो ऐसे मार्ग सदज दी सिल जाते है। जो बात बहुत दिने के शाला श्रौर तकै-चित्वः से किसी के मनेन जमाई जा सके वह सदसा किसी चतुराद भरी एक देरी सी बाकी उक्ति से एक चण मे सुभाई जा सकती है । सदसा? शब्द पर विशेष ध्यान देना चाहिए । क्योंकि विदग्ध वाणी का प्रभाव थी बिना सइसा कद्दे बहुत कुछ चीश दो जाता है। श्रचानक शरीर शीघ्र श्रक्रमण प्रभावशाली होता है । यदि झाक्रांतों को तैयारी का अवसर दे दिया जाय ते पिर विजय अनिश्चय मे पड़ गहं । विजय श्राक्रांत को प्माश्चयै मे डालने मे है । आश्चय उतना श्रधिक गहरा होगा जितनी माघा मे उक्ति सहसा कदी जायगी श्रौर बेग-पू्ण होगी । इन्हीं गुर्णो के कारण कोई व्यक्ति परदयुत्पन्नमति कलाता है । छवसर पर एवती बात को अचानक कद बैठना यदी प्रत्युखन्न मति का चण है। सूक्तिकार को प्रत्युत्पन्नमति होना चाहिए । यदह वातत दिना करे ही माननी चाहिए कि सूक्तिकार के पास ज्ञान का भांडार पर्याप दाना चाहिए, परंतु उससे अधिक उसके पास अवक्र क उपयुक्त उचित उपयोग करने की शक्ति हनी चादिषु ।




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