सतसई - सप्तक | Satasai - Saptak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
660
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
के साथ नए रूप में देखी जाती है। - इस प्रभाव को लाने ठे लिख?
सूक्तिकार के पास कई साधने का दाना श्रावश्यक है । सवे
प्ले उसके कथप में कुछ वक्ता या बॉकापन दाना चाहिए । उसे
घुमाव-फिराव से बात कनी चाहिए : बिल्कुल सीधे ढंग से
कहने से वात का मद बहुत छह घट जता है । सिंदट्वार या
सदर फाटक से श्राक्रमश करनेवाले को इद् भ्रवरोध का सामना
करना पढ़ता है । इसी लिये किले मे प्रवेश करने के लिये आक्रमण-
कारी ऐसें किसी किनारे के छोटे-माठे दरवाजे की टोहे में रहते हैं
जिसका कोट के निदासियों के उतना खयाल न दो । दिल में
प्रवेश करने के लिये भी बात को ऐसे ही साग ढूँढ़ने चाहिएँ ।
विदग्ध बाणी फो ऐसे मार्ग सदज दी सिल जाते है। जो बात बहुत
दिने के शाला श्रौर तकै-चित्वः से किसी के मनेन जमाई जा
सके वह सदसा किसी चतुराद भरी एक देरी सी बाकी उक्ति से
एक चण मे सुभाई जा सकती है । सदसा? शब्द पर विशेष ध्यान
देना चाहिए । क्योंकि विदग्ध वाणी का प्रभाव थी बिना सइसा
कद्दे बहुत कुछ चीश दो जाता है। श्रचानक शरीर शीघ्र श्रक्रमण
प्रभावशाली होता है । यदि झाक्रांतों को तैयारी का अवसर दे
दिया जाय ते पिर विजय अनिश्चय मे पड़ गहं । विजय श्राक्रांत
को प्माश्चयै मे डालने मे है । आश्चय उतना श्रधिक गहरा होगा
जितनी माघा मे उक्ति सहसा कदी जायगी श्रौर बेग-पू्ण होगी ।
इन्हीं गुर्णो के कारण कोई व्यक्ति परदयुत्पन्नमति कलाता है । छवसर
पर एवती बात को अचानक कद बैठना यदी प्रत्युखन्न मति का चण
है। सूक्तिकार को प्रत्युत्पन्नमति होना चाहिए । यदह वातत दिना
करे ही माननी चाहिए कि सूक्तिकार के पास ज्ञान का भांडार पर्याप
दाना चाहिए, परंतु उससे अधिक उसके पास अवक्र क उपयुक्त
उचित उपयोग करने की शक्ति हनी चादिषु ।
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