पाश्चात्य राजनीति विचारों का इतिहास | Pashchaty Rajanitik Vicharon Ka Itihas

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Pashchaty Rajanitik Vicharon Ka Itihas  by प्रभुदत्त शर्मा - Prabhudutt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मे न्यम श्रमे भगु उपनामस्याएँं शोर फिर उसी भी उपनसगस्पाएँं जुडे ठुई है। उसके अतिरिक्त राजनीतिक परिस्थि।तयां श्रीर राजनीतिक विचारफ 1 इिफोधिट्यी (०पठी005 बाएं ही टी पीपा:टाड) राजनीसिंग लिन्तन के बिक्तास पर सामाजिक घातावरण एव राजनीतिक परिस्थितियों पय सवभवी को गररा प्रमाव पड़ना है । राजनीतिफ बिचारकों ने केवचन बौद्धिक स्तर पर ही विधार नहीं पिया है बहिफक च्रपनी समदातीन परिरिरतियो के निरीक्षण एव अयुभव के श्राधार पर भी गम्भीर चिन्तन फारफे उुद परिस्यामस निकाले है । थे परिशाम परिनसंनशील परिस्थितियों से निरन्तर रूप में प्रभापिन होते रतते हैं ग्रौर साथ ही नवीन परिणामों को जन्म भी देते है । एधेन्स के लोकतन्त्र वार सुवरात छो जिपयान का दण्ड दिए नाते की घटना ने प्लेटो को बड़ा मर्मान्तिक माधघात पहुंचाया था । टसलिए उसने श्पने ग्रस्य 'रिपदियक' में तत्कालीन तोकतन्त्र की कट श्रालोचना की और एक ऐसी श्रादशं नगर-द्यवस्या प्रस्तुत की निसमे घासफगण एक सुनियोजित एव निश्चित ढंग से प्रशिक्षित दाशंमिको को कुनीन वर्ग होगा 1 एसी प्रकार कार्ल-माक्से की विचारधारा के ्रनेक सिद्धास्त उसके श्रपने व्यक्तिगत कदु श्रनुभवो ने जन्मे हैं । उसने स्वय श्रोद्योगिक युग में पूंीपतियो द्वारा निर्धेन श्रमिकों का प्रसहनीय शोपण देखा था । यदि उसने यह सब कुछ न देखा होता श्रथवा उसका जन्म कुछ शताब्दियों पुर्वे हुभ्ा होता तो श्रनव्ररत वर्गे-सधर्पं के विव्रादपूर्ण सिद्धान्त पर सम्भवतः वह नहीं पहुंच पाता । भ्रतः यह कहना सर्वधा युक्तिमत्‌ दै कि राजदर्शन कौ रूपरेखा श्रौर उसके विकास पर बाह्य जगत्‌ की गहरी छाप पडती रही है । यहाँ यह्‌ भी उल्ले्ठनीय है कि यद्यपि सामान्यत राजनीतिक विचारको के विचार भ्रपनी समकालीन सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों के कारण सीमावद्ध रहे है, किन्तु कुछ विचारको ने इन सीमाश्री को तोड़ने का भी प्रशसनीय प्रयास किया है । उन्होंने कुछ ऐसे सिद्धान्तो एव विचारों का प्रतिपादन जिया है जिनका महत्व एव प्रभाव सार्वेकालिक एव साववेदेशिक है | गाधी के सत्य एव ग्रहिसा के सिद्धान्त इसी श्रेणी में ग्राते हैं । ४ राजनीतिक सिद्धान्त सदेव परिस्थितियो की उपज ही नही हते श्रपितु ये नवीन राजनीतिक परिस्थितियों को भी जन्म देते है । रूसो ने फ्रांस की राज्य-क्रान्तिको उत्रेरित किया। उसने अपनी पुस्तक '800८81 (01080 मे सामाजिक सविदा-सिद्धान्त के प्रतिपादन द्वारा फ्रांस की राजसत्ता के विरुद्ध व्याप्त ग्रसस्तोप को वाणी दी जो फ्राँस की राज्य-क्रान्ति मे विस्फोटित हुई । इस 'विचार-वैविव्य का एक प्रमुलल कारण परिस्थितियां तो है ही, किन्तु एक अन्य प्रधान कारण _ मावादमकता भी कहा जा सकता है । विचारको के वोद्धिक स्तरमे विभिन्नता होना एक स्वाभाविकत। है । परिस्थितियो'व वातावरण क्रो समकर सही परिणाम निकालने की क्षमता भी ग




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