साहित्यानुशीलन | Sahityanushilan

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Sahityanushilan by शिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य की परख ३ के निर्माण का प्रश्न है जिसमें केवल श्राधिक शोषण श्रौर विज्ञान श्रौर यन्त्रसाधनो के मानव-संहारी प्रयोण [या दुरुपयोग] का बन्द करना ही चरम लक्ष्य नहीं ह। प्रलड्ारिक भाषा में हम कह सकते है कि श्राथिक शोषण श्रौर सास्राज्यवाद को मिटाकर जो जनवादी समाज निर्मित होगा उसके समाजवादी श्राथिक सम्बन्ध उस पीठिका का कायं करेंगे जिस पर नये सानव की मृति कः संस्थापन किया जाया, रात्‌ बह ऐसी संस्कृति होगी जो व्यक्ति के पुरण श्रात्सम-विकास या श्रात्स-सिद्धि का सहज साधन-उपकरण बन सके श्रौर इस प्रकार व्यक्ति श्रौर समाज दोनों के जीवन को समद्ध बना सके । व्यक्ति की दृष्टि से नये जनवाद था समाजवाद का यही श्रन्तिम लक्ष्य है।* हम श्राज संक्रान्ति-काल में रहते हों या “ग्रज्षेप' द्वारा निर्दिष्ट “बढ़ते हुए संघर्ष के युग' में, इस सुक्ष्म विभेद से, श्रनततः, हमारी सांस्कृतिक समस्या में कोई मौलिक श्रन्तर नहीं पड़ता, क्योंकि यह बढ़ता हृग्रा संच, श्रहेतुक श्रौर निर्दश्य नहीं है । यदि इतना प्रत्यक्ष है तो यह भी स्पष्ट है कि श्राज का बढ़ता हुम्रा सब्र किसी विशिष्ट संक्रान्ति-यग की परिकल्पना करकें ही हो रहा हूं। इस कारण वतमान श्रौर निकटवर्तों भविष्य की सांस्कृतिक समस्याएं परस्पर सम्बद्ध हैं । इस बात को श्रौर स्पष्ट करके यों कह सकते है कि श्राज के संघष-पुग से नये जनवाद या समाजवाद के निर्माश-यग तक के श्रन्तरावकाश की सांस्कृतिक समस्याएं एक सुत्र में बंधी हुई है । वर्तमान के संघर्ष में जनवादी शक्तियों को श्रपता समर्थन श्रोर सहयोग देने के श्रतिरिक्त प्रत्येक स॒जनकर्ता श्रौर विशेषकर साहित्यकार श्रौर श्रालो चक के लिए यह काल उन मानव-मृत्यों के निरूपण श्रौर समन्वय का ह जो एक व्यापक सौन्द्यमूलक सामाजिक दृष्टिकोण (०८।२] है. लक: ^) का मूलाधार बन सकं । व्यक्ति की चेतना के संस्कार, उसकी प्रतिभा के सर्वाद्धीए विकास श्र उसके व्यक्तित्व की पूर्णता के लिए एक ऐसे व्ययपक सौन्द्॑मूलक सामाजिक दृष्टिकोण को ्रनिवाय श्रावइ्यकता है, क्योंकि नये शोषण-मृकत श्राथिक सम्बन्धों का उद्देश्य मतुष्य की क्षुघा-काम को वृत्तियों को ऊपर से सन्तुष्ट करना ही नहीं होगा, बल्कि समाज को मानवीय श्रौर सांस्कृतिक बनाकर व्यक्ति की श्रात्सा को परितोष श्रौर रचनात्मक प्रेरणा देना होगा । इस वैज्ञानिक सौन्दर्यमूलक सामाजिक दष्टिकोश (31211100 9 )५1६॥ 6501९) की श्रवधारणा कला श्रौर साहित्य में प्रतिबिम्बिति जीवन-सत्य द्वारा निरूपित मानव-मत्यों से ही हो सकेगी । श्रत: कला श्रौर साहित्य को जन-सुलभ १. मार्क ने “कम्यनिस्ट घोषणा-पत्र' में ऐसे ही समाज के लिए संघर्ष करने की माँग की है जिसमें “० घा। (९८०्लगणला४ ज 6801) छा] 06 8 ००7४0 {0८ घाट एव1 छापे {1७6 पव९र्ल्‌णुफरलण॥ ग कप,




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