अरक्षिता | Arakshita

Arakshita by देवीप्रसाद धवन - Deviprasad Dhawan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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% १९ अरक्षिता सरला चुपचाप नीचा सिर किए उसके पास शाकर खड़ी हो गई । ज़रा हँसी का बरबस भाव प्रकट करते हुए बदद बोला-- “बुरा माच गई १” सरला ने धीरे से आँचल से शसू पो लिए | जगत ने इसका हाथ पढ़कर कद्दा--“पगली ! मैंने ऐसी कौन-सी बात कह दी? जरा जोर से बोलने का तो मेय स्वभाव दी है।४ सरला चुपचाप एसी पर बैठ गहे । जगत अव तक यह निणुय न कर सका था कि बदद किन शब्दों में सरका से सब कुछ कद्दे बहुत कुछ सोचने के पश्चात्‌ वदद बोला--'“और तुमसे एक बात कहना दै सरला !” सरला ने सिर उठाइर पति की छोर देखा । ` जगत चुप था। उसे कुछ भी कइने में परेशानी-सी मादम पढ़ रही थी । सरला ने मोष लिया कि बात कुछ असाधारणा अवश्य है। थोड़ी देर चुप रइकर जगत ने कददा--'“बात यद हैकि ` मेरे एक मित्र की प्ली छदे दिनि के लिये मेरे चँ रहना चाहती दै ।”' इतना कहकर वह चुप हो गया । सरला पति केह की




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