अरक्षिता | Arakshita
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
213
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१९ अरक्षिता
सरला चुपचाप नीचा सिर किए उसके पास शाकर खड़ी
हो गई ।
ज़रा हँसी का बरबस भाव प्रकट करते हुए बदद बोला--
“बुरा माच गई १”
सरला ने धीरे से आँचल से शसू पो लिए |
जगत ने इसका हाथ पढ़कर कद्दा--“पगली ! मैंने
ऐसी कौन-सी बात कह दी? जरा जोर से बोलने का तो
मेय स्वभाव दी है।४
सरला चुपचाप एसी पर बैठ गहे । जगत अव तक यह
निणुय न कर सका था कि बदद किन शब्दों में सरका से सब
कुछ कद्दे
बहुत कुछ सोचने के पश्चात् वदद बोला--'“और तुमसे एक
बात कहना दै सरला !”
सरला ने सिर उठाइर पति की छोर देखा ।
` जगत चुप था।
उसे कुछ भी कइने में परेशानी-सी मादम पढ़ रही
थी । सरला ने मोष लिया कि बात कुछ असाधारणा अवश्य
है।
थोड़ी देर चुप रइकर जगत ने कददा--'“बात यद हैकि `
मेरे एक मित्र की प्ली छदे दिनि के लिये मेरे चँ रहना
चाहती दै ।”'
इतना कहकर वह चुप हो गया । सरला पति केह की
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