हिन्दी कहानी कला | Hindi Kahani Kala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हिन्दी कहानी कला 	 - Hindi Kahani Kala

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रतापनारायण टंडन - Pratapnarayan Tandan

Add Infomation AboutPratapnarayan Tandan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १७ ) की अपेक्षा इसकी आनुपातिक महतता में बुद्धि आदि तथ्य आधुनिक कहानी मे शै के भतन के पस््वियकं रै भस्तुत कृति के म्यारह्े अध्याय मे कहानी के सातये मूर तत्व देशकार अथवा वातावरण की व्याख्या की गयी है। कहानी में इस तत्व का नियोजन उसे विश्वससीय एवं यथाधोस्मक पृष्ठभूमि प्रदान करमे के किए किया जाता है। इस तत्व के अन्ससंत कहानी सँ युगीन परिस्थितियों भौर उनके नियामक वैचारिक आन्दोरुनों की भूमिका प्रस्तुत की जाती है। जिस रखना में कहानी के सभी मूल उपकरणों में आनुफालिक दुष्टि से देशकार अथवा वातावरण के चित्रण को अपेक्षाकृत अधिक महत्व प्रदान किया गया हो, उसे वातावरण प्रधान कहानी की कोटि में रखा जाता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से हिन्दी कहानी में नियोजित देशकाल अथवा वातावरण तत्व के स्वरूपात्मक विकास का अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि प्रथम विकास युग से ही इस तत्व की ओर कहामीकारों द्वारा समुचित ध्यान दिया मया है। भारतेन्दु काल से लेकर स्वातंत्रमोत्तर मुग तक की कहानी में विविध क्षेत्रीय वातावरण का चित्रण स्थानीय रंग, लोक तत्व तथा आंचलिक विशेषताओं से युक्त होकर उपलब्ध हुआ है। सिद्धान्तत: कहानी में देशकाल के सफल चित्रण के लिए उसमें कतिपय गुणों का समावेश आवश्यक है, जिनमें प्रसृख रूप से संक्षिप्ता, वास्तविकता, आलंकारिकता, चित्रात्मकता, वर्णेन की सूक्ष्मता तथा तत्वगत सन्तुलन आदि का उल्लेख किया जा सकता है । हिन्दी कहानी के क्षेत्र भे एतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, प्राम्य, धामिक, राजनीतिक, भौगोलिक, जादू, लिलिस्मी, जासूसी तथा प्राकृतिक वातावरण के रूप उपलब्ध होते हैं। बर्तमान हिन्दी कहानी में वातावरण का सर्वथा स्वाभाविक रूप विविध विशेषताओं से युक्त होकर चिचित हुआ है, जो उसके सम्यक प्रभाव की सृष्टि करने में सक्षम है। कहानी के आठवें और अन्तिम मूल उपकरण के रूप मे उदेश्य तत्व की व्याख्या हस पुस्तकं के बा रहे अध्याय में प्रस्तुत की गयी है। प्राचीन युमीन कथा साहित्य से लेकर वतेमान कालीन कहानी तक उहैदय तत्व का स्वरूप भी निरन्तर परिवतित और विकसित होता रहा है । सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से उदस्य को मी कहानी के एक विदषिष्ट तत्व के रूप मे मान्य किया जा सकता है, क्योकि इसकी सम्यक्‌ परिपूणेता ही कहानी रचना की मूरू प्रेरणा होती है। जिस कहानी में लेखक का अभीष्ट ही मुख्य रहता है तथा वहू उसी की सिद्धि को केन्द्र में रखकर उसके अनुरूप अन्य तत्वों का निधोजन करता है, उसे उद्देश्यप्रधान कहानी के वर्ग में रखा जाता है । हिन्दी कहानी मे भनो- २




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now