भारत की वीर विदुषी स्त्रियाँ | Bharat Varsh Ki Veer Vidushi Striya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.16 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के प्रथम भाग की शक
इस समय जगदेव जाग उठा शरीर थेठ़ा हुआ छुछ सोच रहा
था। चीरमती उलटे पैरों चली गई 1 अरे सचमुच ? ये यहीं
कहीं से ्ागये। उसको बड़ा ाश्चर्य हुआ ।
सदेली कुछ दिग्मत फरके राजकुमार के पास पहुंची और
.कदने ! झपका शुभागमन इम सब के लिये
घन्य दै। श्याप अकेले केसे ये कदाँ लाते हैं ह” शज,
कुमार बोला--मैं नीकरी की तलाश में जारदा हूँ, रो की
धकाबट से सुख्ो झागई थी इस लिये यहाँ ठदर गया था
रथ वोड़े को केसकर फिर श्पनी राह लगा ।” राजऊमार को
यद नहीं मालूम था कि यदद ख्री राजा के मदल की दे 1 सहेली
ने कद्दा--झाप जरा दरें में हूं ।” यद कह कर
चद्द वीरमदी के पास श्राई उसको संग लेकर मदल में गई शोर
राजा रानी सबको उसके झाने की सयर सुनाई | जगदेव
'धपने घोड़े को मलझूर फाठी छादि कस रद था कि उसका
छोटा साला धीरय॑सिंद मेदमानदारी की वस्तुएं लेकर श्रा पहुंचा
और जब सर राज महल में इसके घुलाने के लिये राजसी ठाठ
की तैयारियां दोती थीं लव तक इधर उसने उसके पांच छूकर
कहा-“'श्राप जल्दी न करें कुद दिनों यहाँ उदय, पिताजी ने
फददा दै पांच दिन बहुत नदीं दोते श्ाखिर हमारा भी तो कुछ
अप पर इक दे ।” राजकुमार ने कह्ा--सुर्रे दठ महीं मैं
जिद करना नददीं चादवा, यदि [िम्दारी इच्छा ऐसी .ही दै हो
में ठदरने क्रो तैयार हूँ ।”
इसके चाद्.दसी बाग में उसके के लिये डेरा लगाया
गया, की सब्र रम्में झदा की गई सार्यंकाल के समय
मदल,में,नाऊर बद. अपने सास थीर स्वसूर से मिला
दो के,राजा ने उसके इस तरद से, घर छोइने का फारणु
पूथा -1 , जंगदेव ने सब हाल कद सुनाया । लोग पढ़िले ही
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