साहित्य-संदीपनी | Sahitya Sandeepini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९३
दूसरी भार इस व्रात को पुट किया है कि कठिन अभ्यात और साधना से
हम जिन बुदि (स्मरि ) को भ्रात करने है रस्ठुतः वही दमे मायां यन
( अछाउद्दीन की कैद ) से मुक्त करती है ॥ 5६
छीर आदि संत-सूफियों के प्रेमयोग में विचार करने की बात यहद
कि उन्होंने राम और छृष्ण को पति का रूप किस ृटि से दिया हे सौर
, अपने को पदी क्या कहा है। संत-सादित्य छा समीश्चक यह सच्छी तरह,
जानता दै कि “दुरः जघ प्रेम-वाण से शिष्य को आहत फर देतादैतत्र
बह परम पुरुप का साश्षाकतार “दकार अथवा शीर्षस्थान में कर लेता है
९ और तभी से अपने को परम-पुरुप की विवादिता पली के रूप में देखने गतां
है। उसके सामने पतिव्रता सती का रूप मा जाता है. और उसी को अपना
आदर्श मान; कर वह प्रेम के अल़ाड़े में रति का व्यायाम करता दै राम
भौर कृष्ण को बदद परम-पुरुप का वाचक समझता है, कुछ साकेत भौर गोलोक
का निवासी नहीं। संस्कार ययया लोमवश जव वह् राम भौर कृष्ण की
छीलाभो क उच्ठेख करने छगता दे तत्र हम उसे सूर सौर तु्सी के साथ
भक्ति-भूमि पर पाते हैं, किस्तु ज्यो उक कान में यह ध्वनि पडती है
कि राम अयतार तथा अवतारी दोनो ई, त्यों वद कु व्याकल-सा हो नाता
कै और आाप्रद कर कद बैठता दै कि उसके राम वैष्णव भक्तों केमते सर्वधा
भिन्न हैं । राम के स्वरूप का निरूपग ता. वह कर नहीं सकता, किन्तु उन्हें
पति के रूप में मान कर उनके सयोग के लिए तदप दध्र सक्ता है।
उक परेम-पदर्चन म बह उद्वेग भौर वड क्षोभ नदीं मिल सकता जो , सूफी
आायरी में बराबर पाया जाता है। जो छोग ठ्डिता और विद्याखा के रूप में
अपने को कित कर छ्य का भिर जगाते ह उनके मेमयोग के विषय में
क्याकदा जाय,टवे ततो माघुनिक गोपी षौ उदरे) सियो में मी कभी कभी
; एकाध सूफी ऐसे निकल, आति ये जो ख्री-वेप में रददा करते ये, पर मजहबी
अदनन के करण इस प्रकार का अभिनय कर नटराज को छमा नदीं
पाते थे । हि ४ ५
ऊपर जो कुछ कद गया है उसे यदद स्पप्टन्नदीं दो पाता कि 'प्रेंमयोगी,
हिन्दी के सूफियों ने' इढयोग को कि रूप में अपनाया है लौर उसे कहाँ
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