भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश-कथाकाव्य | Bhavisayattkaha Tatha Apbhransh Kathakavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
492
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about देवेन्द्रकुमार शास्त्री - Devendra Kumar Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथस अध्याय
प्च छा स्ताप्सा : प्तदस्प्तच्या नौर यरा
प्रत्येक देश गौर जाति के मूर सस्कार उसकी अपनी भाषा, साहित्य तथा
सस्कृति में निहित रहते है । जातीय जीवन, लोक परम्परा एवं सामाजिक नोति-रीतियो
के अध्ययन से हमे उनको पूरी जानकारी मिलती है । अतएव भाषा और साहित्य का
प्रत्येक संग लोक-मानस की अभिव्यक्ति का ही लिपिवद्ध स्वर होता है । मौखिक रूप में
आज भी ह्मे गुणाढय कौ वृहृत्कथा' तथा प्राकृत मौर अपभ्रंश मे लिखित कथाएँ,
सूक्तियां, सुभाषित एवं अन्य उक्तियाँ गाँवों में प्रचलित सुनाई देती हँ । वस्तुत. युग-
युगो से साहित्यिक तथा सामाजिक परम्परा परस्पर विचारो का विनिमय करती आयी
है 1 इसलिए परम्परा में केवल इतिहास तथा पौराणिकता का लेखा-जोखा न हो कर
लोक-जीवन में परिव्याप्त यथार्थ और भादर्दा, रूप-कुरूप, नीति और उपदेश तथा वृत्ति
एव रीति का भी समाहार हो जाता है ।
प्राय जाति तथा सम्प्रदाय का सम्बन्ध विभिन्न धर्म-नीति एवं भाषा से रहा
है। यदि पालि वीद्धो की भाषा स्यात रही है तो प्राकृत जैनो की और सस्कृत पुरोहितो
की । किन्तु कुछ वोलियाँ प्राग्वैदिक काल से जन-सामान्य की लोक-धारा में प्रवाहित
एव प्रचलित रही हैं, जिनमें उस युग के दाव्द-रूपो की बानगी आज भी स्पष्ट रूप से
देखी जा सकती है । उदाहरण के लिए मन गो, लाजा, रथ तथा दो, छह मौर सात
आदि अन्तरीय भापाओो मेँ प्रयुक्त दाव्द हैं । लोक भाषाओ में प्रचलित कुछ वैदिक
शब्द इस प्रकार हैं--अजगर , भेडो, लाहा, योद् इत्यादि । कुछ भिन्न अर्थो मे प्रयुक्त
शब्द भी मिलते है* तथा कई विकसित रूप में ।
१ मन ( दा १४।४।३।६ ), अवेस्ता, यस्न ६,२६ ।तथा मन (1५ ) के लिए देखिए--बेव्स्टर्स
न्यु इण्टरनेकानल डिक्शनरी, प° १४६१। गच्छतीति गौ ( ङा० ६।१।२।३४ ), मोस शब्द के लिए
देखिए, पेई द्वारा लिखित र द वल्डसू चीफ लेंग्वेजेज” । दो, छह और सात दाव्दों के लिए भी
वही द्रव्य है। “लाजज्जुद्दोति” ( दा० १३२१ ), देखिए, टर्नर की नेपाली डिक्शनरी ।
रथ ( ऋ० ६! ७४६ ), लेटिन तथा आइरिडय आदि भाषाओं मँ भौ मिलता है ।
२ अजगरो नाम सर्प ( ऋ० ६।४।२२ } अजगर ( अजिर ), भेडो, लावा, लाहा 1
३ रोद ओर वेच् आदि शब्दौ के लिए--टनर कौ नेपालो दिक्कनरी द्रव्य है ।
£ चरू. चमस् ओर दैव-अघर आदि । चरः (ऋ ७।६।९२ ), चमस ( श० ४।२।९४ } 1
५ मेह, झुर्प (सूपा), उद्ुखन (उखलो, ओखली), मुसल म्रूसल), दाति (दाता) आदि | झुर्प , उद्धखल,
मुसल शब्दों के लिए देखिए, ० १८१५४ । मेह (निरुक्त २,६,४) ““दातिर्लवनारथे !*'
निरुक्त | २ 9 १ #। ् 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...