मनोरंजन पुस्तकमाला हिन्दी निबंधमाला भाग - 2 | Manoranjan Pustakmala Hindi Nibandhamala Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) भाषा सिखाते होंगे, जिसका कुछ संकेत अ्रवुलफजल ने भीः किया है। यद्द सब कुछ है, पर हमारी पुस्तकों से यह पता नद्दी चलता कि इन लोगों के द्वारा किन किन पुस्तकों के झ्रलुवाद हुए थे । हाँ, खलीफा सेयद सुद्दस्मद हसन साहब के पुस्तकालय में मैंने एक पुस्तक श्रवश्य ऐसी देखी थी, जे अकबर के समय में लैटिन भाषा से भाषांतरित हद थी । मुल्ला साहब लिखते र कि एकं अवसर पर शेख कुतुबुद्दी न' जालेसरी को, जा बड़े विकट खुराफाती थे, लेग ने पादरियां के साथ वाद-विवाद करने के लिये खड़ा किया । शेख सहव, बहुत ही आवेश-पूर्वक सामसे आ खड़े हुए श्रैर वेले कि खूब ढेर सी आग सुलगाश्रा; ध्रीर जिसे दावा हा बह मेरे साथ श्राग' में कूद पड़े । जा उसमें से जीवित निकल श्र वे उसी का धार्मिक सिद्धांत ठीक समझा जाय । राग सुलगाई गई । उन्होने एक पादरी की कमर में हाथ डालकर कहा--“'हाँ, आइए ।'” पादरियों ने कहा कि यद्द बात बुद्धिमत्ता के विरुद्ध है । अक- बर को भी शेख की यह बात बुरी लगी श्रौर वास्तव मं यह बात ठीक भी नहीं थी । ऐसी बात कदना सानें अप्रत्यक्ष रूप से, यह मान लेना है कि हम कोई बुद्धिमत्ता-पूौ तके नहीं कर सकते । फिर झ्रतिथियों का चित्त दुखी करना न तो धार्मिक दृष्टि से दी ठीक है श्रौर न सेलिक दृष्टि से हो । कवर तिव्व्रत घोर खता के लेने से भी वदाँ के हात सुना करता था । जेन्यो श्नौर वद्धो के मी प्रथ सुना करता था ।




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